सूखा
सूखा


मुझे चिंता है
कोई पढ़ नहीं रहा है मेरी कविताएँ
नहीं आ रहीं दोस्तों की प्रतिक्रियाएँ
कितनी मेहनत से लाता हूँ
खींचकर एक एक शब्द
किसी का ध्यान ही नहीं जाता उन पर
तारीफों का सूखा है सब तरफ।
और मेरे घर के बगल में
सर पर ईंटों का चट्टा लिये
अचक अचक चढ़ रही है गर्भवती स्त्री
एक एक सीढ़ी
सीने से रस्सा बाँध
पूरे ज़ोर से खींच रहा है मजदूर
सरियों से भरी गाड़ी।
पानी के लिए मीलों भटक रही हैं
छोटी छोटी बच्चियाँ
कहीं, बाढ़ में डूबे बच्चों की लाशें
किनारों पर पटक रही हैं नदियाँ
लंगरों में लम्बी कतारें हैं
और अस्पतालों में आपाधापी और मारपीट।
हर तरफ टूट-टूट कर गिर रहा है
वक्त का तंत्र और मुझे
कविताओं की चिंता है।