Sadhika Tiwari

Abstract

2.1  

Sadhika Tiwari

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सरहद पार की दो किताबें

सरहद पार की दो किताबें

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दो किताबें
अगर मिलतीं 
तो आपस में बात करतीं
 
समय और बँटवारे की धूल झाड़कर 
वो दुआ-सलाम करतीं
और जब पूछतीं एक दूसरे का हाल...
 
एक बताती लाहौर के क़िस्से
सिंध की नदियों में तैरते 
बच्चों की कहानी सुनाती
 
नमाज़ों की शामों का आसमान
कैसे बादलों के पीछे से ठिठोली करता है
कैसे आकर बैठते हैं कबूतर शाम की छत पर, ये सुनाती.
 
इस हँसी ठिठोली के बीच सिहर कर वो किताब बताती उस रोज़ का क़िस्सा भी 
जब अल्लाह-हो-अकबर के शोर ने चीख़ें ढकी थीं...
सुनते हैं 
धमाके के पहले कोई सामने के मंदिर में आया था ख़ुद का जिहाद खोजने
 
इस किताब के आँसू पोंछ 
दूसरी किताब कहती ये क़िस्सा कुछ
ऐसा ही है मेरे भी वतन का...
 
कभी अल्लाह की टोपी, 
कभी माथे पर तिलक लगाते हैं
शोर मचाते हैं ख़ून बहाते हैं...
 
दो किताबें ये
जो साथ रहती थीं दिल्ली की 
एक लाइब्रेरी में
गर मिलतीं तो शायद ये बातें करतीं
 
ना जाने कितनी कहानियाँ 
दिल्ली और लाहौर में जो बँट गयीं
उनको पूरा करतीं
 
दो किताबें ये 
अगर मिलतीं.


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