STORYMIRROR

shubharambh Books,Yoga and motivation

Abstract Inspirational

5.0  

shubharambh Books,Yoga and motivation

Abstract Inspirational

जननी जन्मभूमि है

जननी जन्मभूमि है

3 mins
941



जिसका वस्त्र संपूर्ण व्योम है,

करते सूर्य-चंद्र सदा आरती,

पुष्पों से अभिमंत्रित छवि है, 

नदियाँ करती उसका प्रवाह नमन है, 

सिंह गर्जना शंखनाद है, 

वृंद झुंड पूर्ण प्रकाश है, 

जलद कराते उसे स्नान है, 

ऐसी मातृभूमि की महिमा महान है, 

यह सगुण सत्य महा कीर्तिमान है।

रेनू रज-रज कर हम इसमें खेले, 

घुटने बल सरक-सरक खड़े हुए, 

बाल्यावस्था से मातृभूमि से जुड़े हुए, 

तभी तो हम युवावस्था में इसके प्यारे मोती कहलाए, 

इसकी गोद में सिर रखकर अब हम इतने बड़े हुए, 

यह जननी माता प्यारी, हम सबकी पालन हारी, 

तुझे पूजे सब नर नारी, 

जन्म का एक तू ही है कारण, 

करती हम सबका तू ही तारण, 

दुविधा को सुविधा कर देती, 

जब होते हम दुखी, आते शरण तिहारी।

तेरा ही प्रसाद यह भवन महल है, 

खेतों में जो चलते यह हल हैं, 

पालन पोषण सब तेरा फल है, 

खिलाती तू ही जीवन कमल है, 

तेरी ही देन यह जल-थल है, 

यह वृक्ष, वस्त्र सब तेरा गगन है, 

खिलता संपूर्ण समक्ष चमन है, 

सारे प्राणियों का करती तू ही रक्षण है।

जीवन आधार देने वाली माँ तू है, 

त्याग भाव की सत्यमूर्ति तू है, 

सर्वश्रेष्ठ दिव्य द्रव्य दिए हैं, 

कुछ भी ना बदले में कभी लिया है, 

अंकुर सभी उपजे भाग्य भाए हैं, 

भूखों को सदा तूने भोजन कराए हैं।

सभी भाव संभाव दयानिधि, 

सरस संभव स्वभाव समाधान करो माँ।

सब सुख दायिनी, 

जननी जन्म-मरण है तारिणी, 

उपकार तेरा है सब भयहारी, करुणाकारी, मंगलकारी।

देन है तेरी यह तन मन धन, 

सब करते हम तुझ पर अर्पण, 

तेरी मिट्टी से जन्मे हम सब, 

ऋण चुका पाएँगे पता नहीं कब तक।

हे मातृभूमि, हे महामाया, 

जन्म-मरण सब तेरी छाया,&nbs

p;

सुंदर, सौम्य और सुनहरी तेरी भव्यता भरी काया, 

सपनों में भी हमने तुम्हें ही पाया।

मातृ-पितृ और मित्र सब पाए तेरी दया से, 

सब कुछ मिलता है तेरी गोद में, 

मलिनता खोई, ज्ञान पाया है, 

सारी भिन्नता तुझ में समाई है, 

तू सदा सर्वदा सर्वत्र व्याप्त है, 

तेरी चरण वंदना से उतरते सारे पाप हैं।

निर्मल नीर अमृत समान है, 

शीतल मंद स्वच्छंद वायु सब तेरा ही निर्माण है, 

छह ऋतुओं को दान है देती, 

अमरता क्रम को पहचान है देती, 

प्रदूषण और दोहन सब कुछ सह लेती, 

मौन है भाषा, कभी कुछ ना कहती।

हरित वन, फूल पल-पल खिले हैं, 

वृक्षों की डालियों पर मोर पपीहे कूक रहे हैं, 

चंद्रप्रकाश ओस कण से पवित्र प्रवाह करें हैं।

घास सुनहरी और हरी, यह सारे संताप हरें, 

रोशन सवेरे से सारे तम का नाश करें, 

प्रतिदिन जीवन देती भूमि मरण से तारण करती है, 

सुखद, सुंदर और सुगंधित पुष्प खिलाती, 

सरस, सुबोध सरिता यह बहाती, 

हर मर्ज का इलाज यह कर जाती, 

भिन्न पदार्थ धातु और रत्न उपलब्ध कराती, 

अन्न नीर और पवन प्रवाहित यह करवाती, 

हे जग जननी जन्मभूमि तू वसुंधरा, आज हमें जगाती।

खड़े वह वृक्ष सघन हैं, 

भव्य पर्वत अटल नमन है, 

घने-घने तार नदियों के जल आवरण हैं, 

सुखमय शांतिदायक तेरा वातावरण है, 

जननी तेरा उपकार यह समस्त पर्यावरण है।

बृहद समुद्र में नीर का प्रवीण प्रवाह तू, 

तरु राशि सब सारी आस है तू, 

सात्विक सगुण-निर्गुण भाव है तू, 

चंदन ललित अंबर प्रकाश है तू।

वसुधा है, सुधा है, प्रेम माया है, 

वात्सल्या और अपराजिता है तू, 

शीश झुका कर हम करते माँ तेरा नमन है, 

हाथ जोड़कर, घुटने टेककर माँ करते तेरा वंदन है, 

करते अभिनंदन है, करते अभिनंदन है।



Rate this content
Log in

More hindi poem from shubharambh Books,Yoga and motivation

Similar hindi poem from Abstract