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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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प्रकृति हमारा आधार

प्रकृति हमारा आधार

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आज के आधुनिक युग में

हम विकास की सीढ़ियां चढ़ते हुए 

इतराते हुए भूलते जा रहे हैं

कि हम मानव होकर भी मशीन बनते जा रहे हैं।

अपनी प्रकृति और हरियाली से दूर जा रहे हैं

जल, जंगल, जमीन के दुश्मन बन रहे हैं

कंक्रीट के जंगलों का संसार बसा रहे हैं,

नदी, नाले, ताल, तलैया के दुश्मन बन रहे हैं

नये पेड़ रोपने में तो शर्म कर रहे हैं

पर अपने स्वार्थ की खातिर धरा को

पेड़ पौधों और हरियाली से वंचित कर रहे हैं।

प्रकृति ही हमारा जीवन आधार है

यह आज हम आप भूलते जा रहे हैं,

फिर भी बड़ा घमंड कर रहे हैं

कि हम आधुनिकता की राह पर चल रहे हैं,

और प्रकृति को भी चुनौती दे रहे हैं।

हम पर विकास की अंधी दौड़ का ऐसा नशा छा गया है

कि हम अपने ही पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार रहे हैं

और इतना भी समझ नहीं पा रहे हैं

कि प्रकृति को ही हम अपना दुश्मन बना रहे हैं,

अपने लिए तो कम, अगली पीढ़ी के लिए

एक तरफ कुआँ और दूसरी तरफ खाई खोद रहे हैं,

हम ही कल के भविष्य की पीढ़ियों के लिए

दुश्मनी की नींव डाल रहे हैं,

जैसे जीवन का सबसे अच्छा काम कर रहे हैं।

पर यकीन मानिए! कि हम सब

से बड़ा पाप कर रहे हैं

कल के भविष्य के लिए जीवन की नई राह नहीं

मौत का सामान सौंपने का प्रबंध कर रहे हैं

फिर भी बहुत खुश होकर इतरा रहे हैं।

वो भी इसलिए कि आज जब हम ये भूल रहे हैं

कि प्रकृति हमारे जीवन का आधार है 

और हम अपने आधार को ही खोखला कर रहे हैं,

अपने जीवन में जहर तो घोल ही रहे हैं

अगली पीढ़ी के लिए मौत का उपहार

अपने ही हाथों से तैयार कर रहे हैं।

क्योंकि हम आधुनिकता की राह पर तेजी से

भागने की प्रतियोगिता सी कर रहे हैं

विकास की गंगा बहाने की आड़ में

हत्यारा बनने की राह पर चल रहे हैं।

क्योंकि हम प्रकृति का दोहन ही नहीं

उसके अस्तित्व, उसकी आत्मा से भी

खिलवाड़ करने में तनिक नहीं सकुचा रहे हैं।

प्रकृति हमारे जीवन का आधार है 

इस बात को समझ ही नहीं पा रहे हैं

शायद हम संज्ञा, संवेदना शून्य हो रहे हैं

और प्रकृति की वेदना, उसका दर्द

महसूस तक नहीं कर पा रहे हैं।

अब तो ऐसा लगता है कि हम हों या आप

मानव कहलाने के लायक ही नहीं रह गये हैं?

क्योंकि हम आप सब स्वयं ही

मौत का मचान बनाने में बड़ा व्यस्त लग रहे हैं। 



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