ब्रह्म वंदना
ब्रह्म वंदना
वसुंधरा की गोद में,
आकाश के उमंग में,
पर्वतों किस श्रृंग में,
ताल की तरंग में,
हर कण में विराजित है,
वह सर्वोच्च सत्ता।
बिना इजाजत जिसके,
हिलता न कोई पत्ता।
हम सब है
उनकी कृतियाँ,
पर अब भी हैं
कई त्रुटियाँ।
पास है मेरे,
हीरे की पूरी खान।
खोजता हूं फिर,
क्यों बनकर नादान।
खिलाए जिसने हैं,
संपूर्ण चमन।
उस परम ब्रह्म को,
करता नमन।
