"प्रवासी संग आए थे"
"प्रवासी संग आए थे"
बीते इस लॉकडाउन के दरमियाँ,
तुम संग खूब खेले।
भरोसा तो रहा कि खुले ये,
और तुम संग जाऊं मेले।
उत्कृष्ट विचारों की प्रस्तुति,
मेरा लगाव तेरी प्रति मानो एक भिन्न रिश्ता था।
रिश्ते में तू भांजा लगता, उम्र से मैं छोटा रहता
सोचो मित्रवर तेरे संग मेरा कैसा रिश्ता था।
सुबह-शाम मिलते फुलदाहा के वो पुलिया पे।
मैं चेहरा देखता, तू चप्पल देखता
सोचो कैसे बीते ये दिन ऐसे हुलिया पे।
पुलिया में विद्दमान हो,
सिर्फ आईएएस का ही सवाल था।
अन्य मित्रगण आज भी कहते-
सुधीर और आलोक यार तू तो कमाल था।
खबर आई सबको अपनी बस्ती की।
शायद अब तो राशन हो जाएगी सस्ती की।
बंबई से प्रवासी जब लौटे थे वापस,
उन संग मित्र तुम भी आये थे।
व्यतीत पल के उपरांत उन संग,
तेरे जाने का भी ख़बर जब सुने थे
सच कहूं तो यारा मिलन के आख़िरी पल में
आलिंगन में आ आत्म की आंतरिक रोना
हम भी रोये थे।
अलविदा कह-कह हाथों से,
अपने-अपने घर के राहों को दुःख से पकड़े थे।
याद रहेगा सदा वो मूलभूत मंत्र
जो साथ जीने की कसमें खाते थे।
