बहुत कुछ
बहुत कुछ


बहुत कुछ पीछे छोड़ आया हूं
स्वप्न महल स्वयं तोड़ आया हूं
दिखावे वाले ज्यादा पसंद न थे,
शीशा छद्म छवि छोड़ आया हूं
सत्य खोज में इतना दूर आया हूं
अपनी ही परछाई छोड़ आया हूं
बहुत कुछ पीछे छोड़ आया हूं
छद्म भरे वेश को छोड़ आया हूं
बहते है, आंसू मेरे, भले बहते रहे,
आँसूओ में शोले छोड़ आया हूं
लोग आज छद्म वेश से खुश है,
में बहरूपिया मन छोड़ आया हूं
मुझे केवल मेरी विजय चाहिये,
पराजय की जय ओढ़ आया हूं
बहुत कुछ पीछे छोड़ आया हूं
दिखावे का गीत छोड़ आया हूं
दीपक हूं और दीपक ही रहूंगा,
तम का प्रलोभन छोड़ आया हूं
लोगों से मुझे क्या लेना-देना है,
भीतरी अहंकार छोड़ आया हूं
बहुत कुछ पीछे छोड़ आया हूं
फिजूल बेड़ियां तोड़ आया हूं
अपनी ही जिंदगी का स्वर हूं,
छद्म आचरण का नहीं घर हूं,
स्व आवाज में बोल आया हूं
मिलावटी चीजें छोड़ आया हूं
जिंदगी जीऊंगा स्व-हिसाब से,
यह पराया बोझा छोड़ आया हूं
बहुत कुछ पीछे छोड़ आया हूं
दगाबाजी दुकान छोड़ आया हूं
आंख के वो तारे तोड़ आया हूं
जिनसे असत्य रोशनी पाया हूं
अब से पराई रोशनी छोड़ दी,
स्व रोशनी की जोत लाया हूं
न दिखेंगे अब बनावटी चेहरे,
बनावटी दुनिया छोड़ आया हूं
बहुत कुछ पीछे छोड़ आया हूं
बनावटी दरख़्त तोड़ आया हूं
जिधर से हकीकत का साया है,
अब से मन उधर मोड़ आया हूं