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AJAY AMITABH SUMAN

Abstract

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AJAY AMITABH SUMAN

Abstract

करार

करार

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किसी की जीत या किसी की हार का बाजार शोक नहीं मनाता। एक व्यापारी का पतन दूसरे व्यापारी के उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है सत्यनिष्ठा

, ईमानदारी, प्रेम इत्यादि की बातें व्यापार में खोटे सिक्के की तरह हैं, जो मूल्यवान दिखाई तो पड़ती है , परन्तु होती हैं मूल्यहीन । अक्सर बेईमानी , धूर्त्तता, रिश्वतखोरी, दलाली और झूठ की राह पर चलने वाले बाजार में तरक्की का पाठ पढ़ाते हुए मिल जाएंगे। बाजार में मुनाफा से बढ़कर कोई मित्र नहीं और नुकसान से बुरा कोई शत्रु नहीं। हालाँकि बाजार के मूल्यों पर आधारित जीवन वालों का पतन भी बाजार के नियमों के अनुसार हीं होता है। ये ठीक वैसा हीं है जैसे कि जंगल के नियम के अनुसार जीवन व्यतित करनेवाले राजा बालि का अंत भी जंगल के कानून के अनुसार हीं हुआ। बाजार के व्यवहार अनुसार जीवन जीने वालों को इसके दुष्परिणामों के प्रति सचेत करती हुई व्ययंगात्मक कविता।


बिखर रहा है कोई ये जान लो तो ठीक ,

यही तो वक़्त चोट दो औजार के साथ।

वक्त का क्या मौका ये आए न आए,

कि ढह चला है किला दरार के साथ।


छिपी हुई बारीकियां नेपथ्य में ले सीख ,

कि झूठ हीं फैलाना सत्याचार के साथ ।

औकात पे नजर रहे जज्बात बेअसर रहे ,

शतरंजी चाल बाजियाँ करार के साथ।


दास्ताने क़ुसूर भी बता के क्या मिलेगा,

गुनाह छिप हैं जातें अखबार के साथ।

नसीहत-ए-बाजार में आँसू बेजार हैं ,

कि दाम हर दुआ की बीमार के साथ।


चुप सी हीं होती हैं चीखती खामोशियाँ,

ये शोर का सलीका कारोबार के साथ।

ईमान के भी मशवरें हैं लेते हज्जाल से,

मजबूरियाँ भी कैसी लाचार के साथ।


झूठ के दलाल करे सच को हलाल हैं,

पूछो न क्या हुआ है खुद्दार के साथ।

तररकी का ज्ञान बांटे चोर खुल्ले आम,

कि चल रही है रोजी गद्दार के साथ।


दाग जो हैं पैसे से होते बेदाग आज ,

बिक रही है आबरू चीत्कार के साथ।

सच्ची जुबाँ की भी बोल क्या मोल क्या?

गिरवी न चाहे क्या क्या उधार के साथ।


आन में भी क्या है कि शान में भी क्या है,

ना जीत से है मतलब ना हार के साथ।

फायदा नुकसान की हीं बात जानता है,

यही कायदा कानून है करार के साथ।


सीख लो बारीकियाँ ये कायदा ये फायदा,

हँसकर भी क्या मिलेगा व्यापार के साथ।

बाज़ार में हो घर पे जमीर रख के आना,

खोटे है सिक्के सारे कारोबार के साथ।


नफे की खुमारी में तुम जो मदहोश आज,

कि छू रहो हो आसमां व्यापार के साथ ।

कोठरी-ए-काजल सफेदी क्या मांगना?

सोचो न क्या क्या होगा खरीददार के साथ।


काटते हो इससे कट जाओगे भी एक दिन,

देख धार बड़ी तेज इस हथियार से साथ।

मक्कार है बाजार ये ना माँ का ना बाप का ,

डूबोगे तब हंसेगा धिक्कार के साथ ।


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