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AMIT SAGAR

Abstract

4.8  

AMIT SAGAR

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ओ जाना मैं क्यूँ बदलूँ

ओ जाना मैं क्यूँ बदलूँ

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एक लड़की जो मित्र थी मेरी

मुझको अपना कहती थी

कभी वो लड़ती कभी झगड़ती

साथ साथ पर रहती थी


मैं भोला था वो चंचल थी

जो वो कहती सुन लेता

उसको आलिंगन करने को

ख्वाब झिलमिले बुन लेता


वो कहती थी तुम हो सीधे

पर यह दुनिया नटखट है 

तुम इतना चुप क्यों रहते हो 

क्या तुम्हें किसी की गफलत है


मैं तुमसे मिलने आती हूँ  

तुम गुमशुम से हो पगले

दुनिया इतनी बदल रही है

ओ जाना तुम क्यों ना बदले


मैंने कहा मैं वक्त नहीं 

संझा होते जो ढल जाँऊ

बैढँगी दुनिया के लियें मैं

खुद को नहीं बदल पाँऊ


ये दिखावटी राग देखकर

तेरा मन क्यूँ मचल रहा

मुझको इतना बतला दे 

क्या है दुनिया में बदल रहा


वो बोली सुन बुद्धु पगले

भाषा बदली फैशन बदले

बदल गये है सूर और ताल

दीपावली के दीये हैं बदले

बदल गया होली का गुलाल


रस्ते बदले राही बदले

बदल गया गंगा का नीर

जो ना बदले बढ़ते युग में 

बदल गयी उसकी तकदीर


ओ जाना तुम क्यों ना बदले 

मैंने कहा सुन चंचल तितली

माता की ममता ना बदली

ना बदला है पिता का प्यार


फूलों की खुशबु ना बदली 

ना बदली मौसम की  बहार 

सूरज की किरणें ना बदली

ना बदला तारों का आकार


चन्दा की आभा न बदली 

ना बदली पायल की झंकार

ओ जाना फिर मैं क्यों बदलूँ

माथे को वो मेरे चूम 


वो बोली तुम हो मासूम

खेतों की हरियाली बदली 

गीत और कव्वाली बदली 

प्रेम की हर परिभाषा बदली 


आशा और निराशा बदली

खुशियाँ बदली मातम बदले

शादी व्याह की रीत है बदली

शिक्षा का स्वारूप है बदला


इम्तिहान का रुप है बदला 

ओ जाना तुम क्यों ना बदले

मैं बोला सुन कोयल मेरी

पहर ना बदले शहर ना बदले


नदियाँ और नहर ना बदले

भूख ना बदली प्यास ना बदली

आस और विस्वास ना बदले 

भाई-बहन का स्नेह ना बदला


चक्र लगाते ग्रह ना बदले

बच्चो के वो खेल ना बदले 

ना बदली गली हा-हा कार

सजा और शिकवे ना बदले


ना बदली टीचर की ‌मार

ओ जाना फिर मैं‌ क्यो बदलूँ

वो बोली सुन साजन मेरे

शक्ति बदली भक्ति बदली


और बदले व्यंजन के रंग

दुआ और और उम्मीद भी बदली

बदल गये श्रद्धा के ढंग

कर्म भी बदला धर्म भी बदला


पर्वत का आकार भी बदला

झूठ भी बदला सच भी बदला

बदल गया सारा संसार 

ओ जाना तुम क्यों ना बदले


मैं बोला सुन सजनीे मेरी

तितली का वो रंग ना बदला

मित्रों का वो संग ना बदला

गुरुओं की वाणी ना बदली


ना बदली मस्जिद की आजा़न

शंखों की आवाज ना बदली

ना बदली गीता ना कुरान

शरहद और सीमा ना बदली

ना बदला सेना का ईमान 


ओ जाना फिर मै क्यों बदलूँ

वो बोली सुन प्रीयतम मेरे

नेताओ का चोला बदला

बदल गये डाकू और चोर


रिश्वत का अब रूप है बदला

बदली रातें बदली भौर

पैड़ के मीठे फल है बदले

फूल और भँवरे भी बदले


मय बदले मयखाने बदले

जाने कित‌ने जमाने बदले

पर जाना तुम क्यों ना बदले

मैं बोला सुन पंखुड़ी मेरी


प्रेम प्रीत के प्रसंग ना बदले

ना बदला है दिल का प्यार

सड़को का ट्राफिक ना बदला

ना बदली राशन की कतार


कोयल की वो कूक ना बदली

ना बदली घर की तकरार

ताज का ना सौन्दर्य बदला

ना बदला है चार मिनार 


ओ जाना फिर मैं क्यों बदलूँ

अन्त में बस मैं यही कहूँगा 

ना बदला हूँ ना बदलूँगा।


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