नारी पे जुल्म होगा कब तक
नारी पे जुल्म होगा कब तक
धरती को भी दर्द बड़ा
अम्बर सिर हेै झुकाए खड़ा
चाँद खुदा से पूँछ पड़ा
नारी पे जुल्म होगा कब तक
सतयुग से कलयुग भी आया
पड़ा रहा मर्दों का साया
नर ने तरस ना उनपर खाया
मुँह से ना आह निकली जब तक
नारी पे जुल्म होगा कब तक
गलियों में गुन्डे क्यों घेरे
कॉलिज में लड़के क्यों छेड़े
पहली बच्ची से मुँह फेरे
वहशी बनेगी दुनिया कब तक
नारी पे जुल्म होगा कब तक
मुँह दिखलाना उसे मना था
शिक्षा पाना उसे मना था
प्यार दिखाना उसे मना था
पहुँचे दुआएँ कैसे रब तक
नारी पे जुल्म होगा कब तक।