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AMIT SAGAR

Others

4.3  

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बदलता वक्त

बदलता वक्त

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बदलते वक्त में हर चीज की

तरक्की हो रही थी 

हाथ के पंखे , छत पर जा टंगे थे,

छत से दीवारों पर, और दीवार से 

सिर पर आने की सोच रहें हैं

पर गर्मी अब भी उतनी ही लगती है

चटाई चार पायो की खाट बन चुकी है 

फिर बने तख्त, और अब दौर बेड का  

चल रहा है, जिस पर फॉम के गद्दे भी हैं 

पर नींद अब उतनी नहीं आती

तालाब, कुएं बन चुके थे , फिर बने‌ 

हाथ वाले नल , उसके बाद बनी टंकी 

और अब तो R o का दौर चल रहा है 

पर प्यास अब उतनी नहीं बुझती 


मिट्टी के घर और

झोपड़ों से टपकता पानी

भुलाये नहीं भूलता, फिर बने ईंट पत्थर के घर 

अब दौर बंगलो का चल रहा है 

पर चैन और सुकून अब उतना नहीं मिलता

औरत की सुन्दरता पहले चोले बुरके में छिपी थी

फिर उसने कुर्ता पहन सुन्दरता का प्रचार किया

अब वो सुन्दरता नेकर बनियान पहन 

समाज में नंगा नाच कर रही है 

पर सूरतें अब बेढंगी होती जा रही हैं

सकरी कच्ची सड़कों पर डामर पड़ा 

फिर सिमेंट से उन्हें पक्का और बड़ा बनाया 

फिर हाईवे बने फ्लाईऑवर बने 

पर ट्रैफिक जाम अब भी उतना ही लगता है

 



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