वो माँ ही है जो...
वो माँ ही है जो...


माँ एक छोटा सा प्यारा शब्द है
जिसमें सारा संसार समाता है
इस दुनिया में हर कोई
माँ के पेट से ही आता है
हर बच्चे को पहला आहार
माँ के तन से ही मिलता है
माँ का ही प्यार पाकर
बच्चा फूल की तरह खिलता है
माँ चेतना है माँ वेदना है
मँ देवी का अवतार है
माँ गीता है माँ कुरान है
माँ इबादत है माँ ईमान है
माँ सजदा है माँ श्रद्धा है
माँ ही बच्चों का प्यार है
माँ साधना शीतलता है
माँ हर घर का संस्कार है
वो माँ ही है जो भूखे रहकर
अपनो का पेट भरती है
वो माँ ही है जो तन को बेचकर
बच्चों का तन ढकती है
वो माँ ही है जो घर घर जाकर
चूल्हा चौका करती है
वो माँ ही है जो गीले में भी
बच्चों को सूखा रखती है
माँ नभ भी है माँ नीर भी है
और माँ ही नयनतारा है
माँ हँसी भी है माँ खुशी भी है
माँ जादू का पिटारा है
माँ सत्य है माँ शिव भी है
माँ सुन्दरता का रूप है
माँ चाँद की चंचलता है
माँ ही सूरज की धूप है
वो माँ ही है जो खुद तुतलाकर
मुझसे कुछ बुलवाती थी
वो माँ ही है जो लोरी गाकर
काँधे पर मुझे सुलाती थी
वो माँ ही है जो शिकवे सुनकर
मुझको आँचल में छुपाती थी
वो माँ ही है जो नजर का टीका
माथे पर मेरे लगाती थी
माँ अन्नदाता है अन्नपुर्णा है
माँ ही भाग्यविधाता है
माँ आशा है उम्मीद है
माँ ही कर्मो की दाता है
माँ सागर है माँ स्रष्टी है
माँ ज्योति है माँ द्रष्टी है
माँ ताल है माँ सरगम है
माँ दुआ है माँ मरहम है
वो माँ ही है जिसको छोटा
बच्चा भी याद करता है
वो माँ ही है जिसकी हर एक
बुजुर्ग भी फरियाद करता है
वो माँ ही तो है जो सदा आगे
बढ़ने की कामना करती है
वो माँ ही तो है जो ऊँचा
पढ़ने की कामना करती है
माँ आरजू है माँ जुनून है
माँ चैन है माँ सुकून है
माँ ईश्वर का वरदान है
माँ ही मेरा अभिमान है
माँ वैभव है माँ गौरव है
माँ भैरवी है माँ भैरव है
माँ निरुपा है माँ रीमा है
माँ अचला है माँ दुर्गा है
वो माँ ही है जो दुख सहती है
अंगारों पर चलती है
वो माँ ही है जो फूल के संग संग
काँटों को भी चुनती है
वो माँ ही है जो रात-रात भर
राह द्वार पर तकती है
वो माँ ही है जो छुपा-छुपाकर
चिज्जी मुझको रखती है
माँ ही पेड़ की छाया है
माँ ही कुबेर की माया है
माँ नीरज है माँ सतलज है
माँ ही तो मेरा साया है
माँ नरगिस है माँ अमृत है
माँ शारदा है सावत्री है
माँ धरती है माँ अम्बर है
माँ ही तो सीप का मोती है
वो माँ ही है जिसके चरणों की
खुदा भी पूजा करता है
वो माँ ही है जिसको कौआ भी
हंस के जैंसा दिखता है
वो माँ ही है जिसने पुरुषोत्तम
राम को जन्म दिया
वो माँ ही है जिसने चक्रधारी
क्रष्ण को जन्म दिया
माँ अलख है माँ जगत है
माँ मधु है मधुकंठ है
माँ दीक्षा है दुखहरणी है
माँ रजनी है माँ रमणिक है
माँ ग्रीष्म काल में ठण्डक है
माँ शीत ऋतु में गर्मी है
माँ बसन्त ऋतु की बहार हे
माँ बारिश की बौछार है
अन्त में बस इतना ही कहूँगा
एक माँ ही ऐसा रिश्ता है
जो अनन्त काल ना घिसता है