धर्म की डोर
धर्म की डोर
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जो 23 जनवरी 1897 को कटक(ओडिशा) में जानकीनाथ बोस जी के यहां जन्में। इनकी माता जी का नाम प्रभावती था।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जो इंसान खुद एक विशाल सेना 'आजाद हिन्द फौज' के संस्थापक रहे उनके साथ 1916 में एक ऐसा वाक्यात हुआ जो इस प्रकार हैं
प्रेसीडेंसी कॉलेज के अध्यापकों और छात्रों के बीच झगड़ा हो गया सुभाष ने छात्रों का नेतृत्व किया जिसके कारण उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज से एक साल के लिये निकाल दिया गया और परीक्षा देने पर प्रतिबन्ध भी लगा दिया। 49वीं बंगाल रेजीमेण्ट में भर्ती के लिये उन्होंने परीक्षा दी किन्तु आँखें खराब होने के कारण उन्हें सेना के लिये अयोग्य घोषित कर दिया गया। ये तथ्य मुझे उनके जीवन में बहुत रोचक लगा वैसे
नेता जी को एक महान योद्धा व देश के पहले प्रधानमंत्री के रुप में भी जाना जाता हैं 21अक्तुबर 1943 को नेता जी ने अंडमान निकोबार द्वीप से आजाद भारत की घोषणा कर अपने कर्नल शौकत अली मलिक को लाल किले पर झंडा फहराने को कहा पर वो वहां तक नहीं पहुंच पाए। इतिहास में कर्नल शौकत अली मलिक ऐसे बहादुर थे जिसने पहली बार देश की जमीं पर मणिपुर में स्थित मोईरांग जगह को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद करवा कर तिरंगा फहराया था या यूं कह लीजिए कि आजाद हिन्दू फोज ने पहली जीत का परचम लहराया था जो कि वे बहादुर रेजीमेंट को लीड कर रहे थे।
इस दौरान नेता जी ने कहा था.........
देश में एक तरफ कुछ चुनिंदा लोग जो अपनी राजस्व इच्छाओं के कारण मुल्क को आजादी दिलाने की तरफ ले जा रहें हैं पर हम न तो देश को बांटना चाहते हैं और न हमारा कोई निजी स्वार्थ हैं
नेता जी एक बात बार बार दोहराते थे कि मैं स्वामी विवेकानंद के बताए आदर्श मार्गो पर चल कर देश को आजाद करवाना चहाता हूं
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का एक नारा जो उस समय की हालातों को व्यां करता हैं "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा" यह नारा नेता जी ने आजाद हिन्द फौज के संस्थापक के रूप मे रंगून के जुबली हॉल समारोह में दिया था और साथ ही कहा दिल्ली चलों
एक कथन मेरे ज़हन में अब भी खुशी का माहौल बना रहा हैं कि ये वही दौर था जब समस्त यूरोप में सम्राट हिटलर का साम्राज्य होते हुऐ भी नेता जी केवल एक ऐसे शख्स थे जो हिटलर के समक्ष जा कर निडरता दिखाते थे और आज कल के कुछ लोग उनकी क्षमताओं पर प्रश्न चिन्ह लगा कर उनकी कुर्बानी के उपर दाग़ लगा रहे हैं
और रही बात उनके देहांत की तो जो इंसान लाखों लोगों को गुलामी की जंजीरों से छुटा कर गए थे उनका फिर क्या पता वो कहां गए बाकी वो सचमुच एक देवता थे
कुछ तथ्यों के आधार पर अधिकांश लोग मानते हैं कि दुसरे विश्व युद्ध के दौरान आत्मसमर्पण के कुछ दिन बाद छूट कर लोटते वक्त उनकी हवाई दुर्घटना में 18 अगस्त 1945 को वे पंच तत्व में विलीन हो गए परंतु मैं इस बात से सहमत नहीं हूं।
