होश बेपरवाह है
होश बेपरवाह है
होश बेपरवाह है ,आलम की खूबसूरत गहराइयों से
क्यूँ भला हो शिकायत ,संगदिल सनम तनहाइयों से
के सुकून मिलता है इसे ,डूब के यादों में फलक
और झूमता है ,हो कर मगन ,बाहों में परछाइयों के
कैसे बदलेंगे हालत यहाँ ,कैसी होगी नई सुबह
धड़कनों से मिलकर के दर्द ,अंधेरों में रमता रहा
के क्या फ़रक हो सजा , उल्फ़त में रुसवाइयों से
क्या फ़रक हो गुनाह भी , चीखती इन खामोशियों से
है यक़ीन के ज़िंदा है हम , पलकें भीगी है ,साँसें चल रही
तड़प की ये लहरें ऐ दिल ,लहू बन नशों में बह रही
के ये ज़िंदगी , ये कारवाँ , रखती राब्ता गुमनामियों से
के कोई हमसफ़र नहीं चाहिए , जी लेंगे इन ही ख़ामियों से।