ख्वाहिशें भी कमाल करती हैं
ख्वाहिशें भी कमाल करती हैं
कभी खामोश तो कभी मचलती हैं...!
ख्वाहिशें भी कमाल करती हैं..!!
कभी कैद तो कभी आजाद हैं...!
जिम्मेदारियाँ भी अपने कर्ज भरती हैं..!!
कभी हैंरान तो कभी परेशान हैं...!
जिन्दगी भी हर मोड पर दर्द सहती हैं..!!
कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ हैं...!
नदियां भी खामोशी से बहती हैं..!!
कभी भरी तो कभी खाली हैं...!
आँखें भी सहमी सहमी सी रहती हैं..!!
कभी बंजर तो कभी हरियाली हैं...!
धरती भी दो बूंदों के लिए तरसती हैं..!!
टुट कर बिखर जाने के डर से...!
अब तो हर कली मुस्कराने से डरती हैं..!!
