तक़दीर
तक़दीर
लेकर अपने घर का सारा बोझ मुंख पर सूकून रखते हैं....
वो शहर में रहने वाले खुद का गाँव में मकान रखते हैं....
कोई कैसे पढ़ पाएंगा दर्द -ए- दिल हमारा,
हम दिल में जख़्म और चेहरे पर मुस्कान रखते हैं....
जिनकी सारी इच्छाएँ पूरी कर चूंकि हैं तकदीर
वह फिर भी दिल में अब भी कई अरमान रखते हैं....
जो रख देते हैं दिल पर हमारे हाथ अपना,
फिर हम भी उनके हाथ में अपनी जान रखते हैं....
किस्मत वालों को भला कौन याद रखता हैं, मेहनत करने वालों
से पूछिए वोह पैरों में जमीन और मुठ्ठी में आसमान रखते हैं....