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SMRITI SHIKHHA

Action Inspirational

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SMRITI SHIKHHA

Action Inspirational

महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि

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जिन्हें है जाता कहा देवों के देव जो हैं सारे देवताओं से कहलाते महादेव 

है नही वो कोई और है वो हमारे भोले नाथ जिन्हे कहा रुद्र देव भी जाता है 

हैं वो हमारे शिव जी जो हैं असल में बड़े हीं भोले जो हो जाते हैं बड़े जल्द बहुत हीं प्रसन्न 

कर जाने पर कुछ काम जो है थोड़ा सा अच्छा चाहे क्यों न किए गए हो

वो बदमाशों से लेकर कुछ गलत इरादे 

करने पर उनकी बेइज्जती होते नहीं हैं वो क्रोधित सोच कर बदमाश को बड़े मासूम सा संतान 

जो चल पड़ा है गलत रास्ते पर या तो कोई कार्य कोई कारण है वो असंतोष

ये नहीं सोच कर नहीं हैं लेते हमारे भोले नाथ जी हमारे शंकर हमारे शिव जी अपने हृदय पर ।


पर होते हैं वो जब भी अत्यंत क्रोधित करते हैं वो उस दुष्ट का संहार कहलाते हैं वो संहारक देवता 

करते हैं वो तांडव क्रोध की अग्नि उसकी ज्वाला में जल के जिससे कांपता थर थर पूरा संसार है 

श्रृष्टि ब्रम्हांड तड़पने लगता जब करते हमारे शिव जी क्रोध तांडव 

जिससे होने लगता सब कुछ छीन भिन्न एवं अष्ट भ्रष्ट हिला देते वो पूरा जहां अपने तांडव से 

जहां खो देती है श्रृष्टि, हमारी धरती और बाकी सब ग्रहों अपने संतुलन 

जहां नहीं आती काम बाकी सारी देवताओं के सारे शक्ति है रोक पाने शिव जी के तांडव से 

पृथ्वी में आग का बरसना आसमान से तारों का झुलसना

सारे जीवों प्राणियों का तड़प उठना ऐसा होता हमारे शिव जी का क्रोध है ।


है महाशिवरात्रि हम मनाते मान के साक्षी महादेव और हमारी माता पार्वती के विवाह को 

जिसका है साक्षी पूरा स्वर्ग एवं वैकुंठ और सारे ब्रह्म ऋषि एवं सारे त्रिदेव 

है वो हमारे लिए सबसे अनोखी शादी जो मिलाते हैं हमारे शिव और शक्ति को 

देते हमारे श्रृष्टि को माता पिता का होने का सुख जो इस दुनिया में होता अनाथ और अकेला है 

देते हैं हमें प्रेम का सही ज्ञान हैं वो सिखाते कुर्बानी का सही अर्थ सही मायना होता है क्या 

त्याग कहते आखिर किसे हैं ये हमें मिलता है हमारे प्रभु शिव जी से सीख 

प्यार में न सिर्फ दिनों का या सालों का किया उन्होंने जन्मो में इंतज़ार था

तब जाके मिले थे उनको माता पार्वती बन के उनकी पत्नी जो हुआ करती

उनके पिछले जन्म में माता सती थी ।


कुछ लोग महाशिवरात्रि मानते उस दिन उस तिथि और नक्षत्र को हैं 

जिस दिन महादेव ने बचाने के लिए हमारे चंद्र देव को देवी सती के पिताजी

ऋषि दक्ष से बचाने के लिए उन्हें अपने शीश अपने मस्तक पर किया उन्हें धारण 

करने के उनको श्राप से मुक्त जो दिया गया था ब्रह्मा देव पुत्र एवं नारायण भक्त

ऋषि दक्ष के द्वारा शिव जी के अलावा नहीं था और किसिके पास बचाने का उपाय चंद्र देव 

जो था देना चंद्र देव को करना अभय दान धारण करके उन्हें उनके मस्तक पर करके

दक्ष का अभिमान चूर चूर और बचा लेना श्रृष्टि को होने देने से चंद्र को उभान 

क्यों की दिया ऋषि दक्ष ने चंद्र देव को २७ पत्नियां और कहा था देना सबको बराबर का प्रेम

जिससे किया चंद्र देव ने इंकार और कहा की वो करेंगे प्रेम और देंगे अपने पत्नी का अस्तित्व किसी एक को 

जिससे आया ऋषि दक्ष को क्रोध और दिया चंद्र देव को ये श्राप की हो जाएंगे

वो धीरे धीरे पूरे श्रृष्टि से लुप्त ख वो देंगे अपनी चमक

जिससे था उनको बचाया हमारे देवों के देव महादेव जो हैं अनादि जिनका है नहीं कोई माता पिता ।


जब हुआ था समुद्र मंथन खोजने के लिए प्रभु नारायण जी की अर्धांगिनी जो खो गई थी

समुंदर की गहराईयों में जब हो गए थे सारे असुर एवं देवताओं के शक्ति और उनके अस्तित्व अधूरे 

हो गए थे वो आधे आधे सब बिना अपने शक्तियों और सामर्थ्य के नही पा रहे थे वो कर कोई भी युद्ध

हो गए थे उनके श्रृंगार भी आधे अधूरे बिना माता लक्ष्मी के उपस्थिति में सब हो रह 

जहां हो गए महादेव और माता पार्वती के शक्तियां भी आधे अधूरे थे खो था दिया

महादेव के सबसे बड़े भक्त और उनके आराध्य ने उनकी अर्धांगिनी और

उनकी जीवन संगिनी जो हैं नारायण की शक्ति 

जिन्हें खोजने के लिए किया उन्होंने समुद्र मंथन जिससे निकला विश का बड़ा घड़ा

जो कर देता सारे देवताओं और इंसानों को कमज़ोर और पूरी श्रृष्टि के लिए थी वो हानिकारक

जिससे बचाने के लिए पूरे श्रृष्टि को उसके विषैली प्रभाव से किया उसका आहार

जो मंत्री के शक्तियां से माता पार्वती ने किया उस विश को

महादेव के कंठ में स्थापित जिससे कहलाए वो गए नीलकंठ थे ।



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