SMRITI SHIKHHA

Romance

4  

SMRITI SHIKHHA

Romance

रुक्मिणी के कान्हा

रुक्मिणी के कान्हा

2 mins
277


ओ कान्हा तुम तो हो सबके प्यारे कान्हा 

तुम्हारा प्रेम तो है राधा फिर भी हो तुम सबके प्रिय कान्हा, 

जब थी मैं विधर्भा में नाम तुम्हारा सुनते हीं मुझे हो गया तुमसे प्रेम

ना देखा था ना पहचानती थी मैं तुमको फिर भी मान लिया तुमको मन में स्वामी बिना किसी भय के जब भी 

हो रहा था मेरा विवाह छेदी राजा शिशुपाल से तय मगर मन में मैने कर लिया ये तय विवाह करूंगी मैं केवल और केवल तुमसे 

बिना ये जाने की है कोई तुम्हारे मन में जिसे हो तुम पूजते

बिना ये जाने क्या बस्ता है कोई तुम्हारे हृदय में तुम्हारे लिए सब कुछ

बिना ये जाने की क्या है कोई तुम्हारे जीवन में मान लिया मैने 

तुम्हे अपना स्वामी मान लिया मैने तुम्हे अपना सब कुछ 

दे दिया अपने जीवन का ये डोर तुम्हारे हाथ कर दिया मैने अपना जीवन तुमको समर्पित 

छोर दिया अब तुम हर चाहे तुम थामो या फिर चाहे छोर दो मेरे जीवन के ये डोर को हो अब तुम मेरे अधिकारी 

दे दिया मेंने तुमको अपने जीवन का ये अधिकार चाहे मानो या तुम ना मानो क्या है तुम्हारे मन में मेरे लिए स्थान या दे दिया किसी और को 

चाहे जो हो परिणाम विवाह करूंगी केवल तुमको तुम हो मेरे कान्हा 

में तुम्हारी तुम हो मेरे कान्हा।


विदर्भा में छुप छुप कर अपने भ्राता से और जरासंध से में तुम्हारे बारे में सोचती थी भेजती थी अपने सैनिकों को करने तुम्हारे विषय में पता

छिप छिप कर उनसे बना रही थी मैं अपने कक्ष में तुम्हारा चित्र जब मिलती थी तुम्हारे बारे में खबरें

छोड़ के पीछे अपने भय को में सदैव मन में तुम्हारा स्मरण करती थी 

तुमसे विवाह करने के सपने अपने पलकों पर में सजा के रखती थी 

मन हीं मान में में तुमसे प्रेम करती थी अपना स्वामी मैं तुम्हे हीं मानती थी 

लिया था मन में मैने अपने ये ठान विवाह केवल तुमसे हीं करूंगी 

चाहे आए मार्ग में मेरे कितने भी असुविधाएं फूलों का वरमाला तुम्हे हीं पहनाऊंगी 

सोच कर ये मैने लिखी तुमको ये चिट्ठी की आकार मेरे विवाह के दिन आओ कार्लो तुम मेरा अपहरण

लेकर मुझे माता पार्वती के मंदिर में कार्लो तुम मेरा अपहरण चाहे देखना पड़े कितना हीं तुम में हीं तो है बसा मेरा संसार का सुख। 

तुम्हे पाकर मैं सदैव के लिए भूल जाऊंगी मेरे सारे दुख 

तुम्हारे लिए भले हीं त्यागने पड़े मुझे हीं मेरा अपना राज्य अपने बड़े भाई रुक्मी को अपनों से सारे रिश्ते नाते 

आऊंगी तुम्हारे पास चलूंगी तुम्हारे संग जहां ले जाओगे तुम मुझको 

बंद करके अपनी आखें दे दूंगी अपने हाथ कहलाऊंगी में कान्हा की रुक्मिणी मैं बनूंगी तुम्हारी जीवन संगिनी 

में हूं तुम्हारी रुक्मिणी तुम हो मेरे कान्हा गुजारूंगी अपने बाकी जीवन तुम्हारे हीं संग तुम हो मेरे कान्हा मैं तुम्हारी रुक्मिणी ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance