Sri Sri Mishra

Romance

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Sri Sri Mishra

Romance

यह प्यार है

यह प्यार है

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उस दृश्य में कोई और न थे...

हांँ.. केवल और केवल हम और तुम थे..

बंद किवाड़ों से नज़ारा जो देखा मेरी आंँखों ने..

वह तो था अद्भुत करोड़ो हजारों लाखों में...

तेरी बंशी अधरों पर जो गूंँज रही थी...

झंकृत हो आत्मा मेरी मध्यम-मध्यम थिरक रही थी..

पूर्ण रूप से तुझे देखा ना था अभी..

हूँ अंजान मैं तुझसे कपाट द्वार के बंद है सभी..

वही द्वार खुल रहा जो अब धीरे-धीरे..

मन नाच रहा जैसे यमुना के तीरे- तीरे..

चक्षुओं ने मेरे तेरी साँवरी छवि जो निहारी..

हुई मस्त मलंग मैं उस लम्हे पर जा रही मैं वारी..

याद नहीं आ रही अब मुझे रुक्मणी और राधा..

चुंबकीय आकर्षण में तेरे हो गई अधीर और आधा..

फिर सोचा कैसे.. रथ से राधेय उतरा होगा..!!!

कुरुक्षेत्र में पकड़ लगाम सारथी बना होगा..

हुआ स्मरण फिर उसी दूजे पल..

कैसे मीरा ने विष जे़हन में उतारा होगा..

बना जो अमृत तेरी चंचल पुतलियों का इशारा होगा..

हूँ अभिभूत मैं.. हर उस घटित घटना पर..

कैसे तू कुंती के घनिष्ठ रहा होगा..

चमकता मुकुट ललाट अभिषेक श्रेष्ठ हुआ होगा..

हर पहर पर रक्षण हेतु प्रवर रहे होंगे..

पार्थ संग सभी भ्राता अनुचर रहे होंगे..

धर्म प्रतीक युधिष्ठिर चँवर डुलाएगा..

निरखेगी उत्तरा भीम पद त्राण धारण कराएगा..

बैठा समाज जब लगाकर सभा..

पांचाली को घृणित घटना को अंजाम देने में..

बनकर सूत उस लम्हे में कैसे तू समाया होगा..!!!

समझने वाले समझ न पाए..हार गए बाजी जीतने वाले..

बन करिश्मा उस युग को स्वरूप से अपने....

तूने सहजता से कितनी ठगाया होगा....

आनंद चमत्कृत संसार जग हो उठा....

मन में सहसा उन्मन फिर प्रश्न उठा....!!!

आज भी लीला- रास की नूपुर छनाछन बजती हैं...

तरु पल्लव बन गोपियाँ संग तेरे नृत्य झमाझम करती हैं..

महसूस स्पर्श मुझे भी तेरा अब हो रहा..

शहद सा रग- रग में तू मुझमे घुल रहा..

चाह कर भी नहीं छुड़ा पा रही..

प्रेमपाश में तेरे जोगन सी जकड़ रही..

देख प्रांगण तेरा मेरे पाँवों की महावर से लाल हो उठा..

पतझड़ सा रूखा जीवन मेरा..

हरा-भरा बन सावन अब महक रहा..

वह स्पंदन कदंब पण का.. कुंज निकुंज सौंदर्य पुष्प सा..

अविरल इत्र चंदन सा मुझ में बस रहा...


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