इश्क़ समंदर
इश्क़ समंदर
हूँ इश्क़ - समंदर बारिश मैं
मुझको साहिल ही रहने दो,
मैं बनूँ फरिश्ता चाह नहीं
इंसान मुझे ही रहने दो !
मैं लड़ सकती हूँ तनहा भी
एहसान यही बस रहने दो,
हूँ इश्क़ - समंदर बारिश मैं
मुझको साहिल ही रहने दो !
बाते, यादें तो दिल में है
चुपचाप मुझे सब सहने दो,
मेरे दिल में है गीत बसा
वीराने में ही रहने दो !
बारिश की बूंदे ठहर गई
ये प्यास इश्क की रहने दो,
कुछ और नहीं मैं चाह रही
तुम नज़्म गजल की बनने दो !
मैं बनी मोहब्बत में पागल
अब उस गम में ही पलने दो,
हूँ खड़ी इश्क़ में तनहा हो
तन्हा ही मुझको रहने दो !
कुछ सपनों को आँसू बनकर
आँखों के अंदर पलने दो,
चल रही आजतक जिस पथ पर
उस पथ पर मुझको चलने दो !
यूँ यादों में मत आना तुम
ये इश्क़ बहुत तड़पाती है,
जब आती है बरसात कभी
वह तेरी याद दिलाती है ।
सूखी डाली में तू ने ही तब
मधुमय कुसुम खिलाया था,
तकिये से पूछो बारिश में
मैं कितना अश्क बहाया था !