STORYMIRROR

Manu Sweta

Romance

4  

Manu Sweta

Romance

मेरा सफर

मेरा सफर

1 min
316

बस यूँ ही ,

कुछ दूर तक चलते रहे हम

अनजान मंजिल की ओर.....साथ थे ,

हाथो में हाथ थे,खुश थे,मगर....खामोश थे

क्यों ????कह नही सकते

लेकिन....चलने को मजबूर थे

और क्यों न हो यही तो नियति है

बस..चलते रहना,चलते रहना

तुम ठहर गएशायद,तुम्हारी मंजिलआ गयी  पर.....

मेरी मंज़िलअभी दूर है पहुँचना भी जरूर हैखेद है !!!

तुम साथ नहीतो क्या ?तुम्हारी बाते तो है

पुरानी यादें तो है इसी में संतोष कर लुंगी

तुम्हारी यादे सहेज कर रख लुंगी लेकिन ....

ये बिल्कुल नही कि.....मैं रुक जाउंगी

मेरा सफरआज भी जारी है

और तब तक जारी रहेगा जब तक 

श्वेता कीएक भी सांस बाकी है।।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance