चाँद
चाँद
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आज चाँद खिड़की से उतरा
कुछ चाहता है मुझसे कहना चाँदनी की चादर रहा फैला।
कुछ परिंदों का कोलाहल शायद तेरा पैगाम लाया अपना दिल रही बहला।
तेरे दीदार को मुन्तज़िर मेरी नज़रें हरदम रही झरोखों को सहला।
चकोर भी मौन है आज जमाने की बेरुखी पर आज चाँदनी रही बुला।
चांदनी की सरगोशी में दोनों की इस ख़ामोशी में ये लम्हा भी गया चला।
कैसे मैं कह दूँ तुमसे जानो तुम अपने दिल की हलचल चिलमन से पर्दा रही उठा।
कैसे कह दूँ मुझसे जुदा है हाँ तू ही तो मेरा खुदा है सजदे में सर ये रही झुका।
एक दिन ले जाओगे चाँद के पार बैठा चांदनी की डोली में उम्मीद ये दिल में रही बैठा।