बस भी करो

बस भी करो

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बस भी करो

और कितने एहसान करोगे

शुक्रिया पूरी की पूरी रात

उठा लाए ओर रख दी मेरे सिरहाने.!


सुनो ठहरो ना थोड़ा 

खामोशियाँ ठहरी है मेरे आस-पास 

कैसे काटूँगी ये सदियों-सी लंबी रात,

काश की कुछ बातों का भी

इंतज़ाम कर लाते,


अपने मौन को मुखर कर दो

एक पहर के जितना

बाकी का मैं देख लूँगी !

 

अब ये क्या क्यूँ पूरा

आसमान उठा लाए 

बहुत ही सुंदर तारों सजा है

पर चौखट कितनी लघु

कहाँ समा पाएगा,

 

ना मकान ही इतना विराट

है रत्ती भर जगह है दरमियां,

चलो मेरी बाँहों में भर लूँ 

पर ये क्या छूते ही सिमट गया !


ना मत ले आना अब

वो बीते लम्हें वापस,

क्या बताऊँ क्या गुज़रती है 

अकेलेपन की आदत हो चली है 

कैसे बिताऊँगी, कैसे जीऊँगी फिर से,


क्या कुछ वक्त भी लाकर

दे सकते हो मेरे हिस्से का ?

"नहीं ना"

फिर तो बस जितने लम्हें बचे है

वो कट जाए काफ़ी है।


समझ नहीं पा रही

मेरा आँचल छोटा है या

तुम्हारे एहसान बड़े

क्यूँ समेट नहीं पा रही।


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