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pawan punyanand

Abstract Romance

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pawan punyanand

Abstract Romance

परिभाषा प्रेम की

परिभाषा प्रेम की

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उसने कहा,

मैं तुमसे प्यार करती हूँ,

मैंने कहा,

चलो अच्छा किया बता दिया,

मेरा भ्रम खत्म हुआ,

तुम्हारा प्यार क्रिया ,

आज करो कल नहीं,

पर मेरे लिए प्यार

क्रिया नहीं,

उसमे होना है,

जीना है,

मन, ह्रदय

और प्राणों के ,

भाव में खोना है,

तुम शायद ना समझो ,

तुम से पीछे हूँ, समय में

आधुनिक प्रेम का पता नहीं

मुझे,

जीता हूँ ,

मैं अब भी,

राधा कृष्ण के स्नेह में,

सुनो,

तुम अगर समझ सको,

प्रेम दिखावा नहीं ,

प्रेम जो कहा नहीं ,

प्रेम जो माँगा नहीं ,

प्रेम जो अर्पण है,

सम्पूर्णता से समर्पण है ,

प्रेम जिसमे ,दो ख़त्म

एक हुआ जाता है,

प्रेम वो ,

जिसमे ह्रदय से बात बताया जाता है ,

आज

जो प्रेम तुम करते हो,

शरीर से मन में कहाँ उतारते हो ,

तुम्हारा प्रेम बस आकर्षण है ,

केवल मैं और देह का

पोषण है,

ये प्यार नहीं धोखा है ।

जिसमे केवल स्वार्थ छिपा,

लेने देने का व्यपार छिपा,

प्रेम अगर तुम करना चाहो

तो पहले मन के निर्मल भावो से,

प्राणों में,प्रेमी के

उतर जाने दो,

प्रेम वो अमर होगा

शरीर सा ना नश्वर होगा ,

तब तुम प्रेमी कहलाओगे

जगत को प्रेम सिखलाओगे।



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