STORYMIRROR

Ruchika Rai

Abstract

5  

Ruchika Rai

Abstract

गाँव वाली दिवाली

गाँव वाली दिवाली

2 mins
502

चलो दिवाली का एक नया रूप हम दिखाते हैं,

दिवाली ऐसी भी होती आप सबको बताते हैं।


जगमग करती दीयों की कतारें सबने देखी,

बिजली की लाइटिंग और फूलों की लड़ियाँ

भी हर किसी ने है देखी,

तोरणद्वार और खूबसूरती से सजी है रंगोली,

नये नये कपड़ों से लकदक सजे सभी 

उत्साह से दिवाली मनाते हैं।

कहीं चकरी ,कही अनार ,कही रॉकेट, कही बम,

कही फुलझड़ियां भी दिखाती है अपना दम।


 मिठाईयों और पकवान की बात सब तुम्हें बताते हैं

चलो दिवाली का एक नया रूप हम दिखाते हैं।


गाँव घर में दीपों को कुछ इस तरह से सजाया है,

जितने कम में काम चल सके उतना ही घर आया है।

दादी का कहना लक्ष्मी जी को सम्भाल रखना है,

एक दिन खर्च कर कहाँ सुख समृद्धि घर आया है।

पाँच दीप भगवान जी को एक दीया तुलसी जी को,

एक दीप रसोई में एक दीप पिछवाड़े कूड़े पर,

एक दीप भंडार में ,एक दीप घर के द्वार पर,

एक एक दीप हर घर में इतना ही दीप दिवाली के लिए आया है।


चलो दिवाली का यह नया रूप आजकल कहाँ समझ आया है,

जिसने देखा है वह ही इसका मतलब समझ पाया है।


घर में इतना तेल नही की दीपों की कतारें सब सजाएं,

उतने से तेल से तो घर में कितने दिन भाजी तरकारी बन जाये।

तरह तरह के मिठाई हो दिवाली में ये क्या जरूरी है,

लड्डू बताशे आ जाये चाहे कितनी भी मजबूरी हो।

पूजा पाठ,आरती गान दिवाली का यही रहे मान,

थोड़ा अच्छा भोजन एक दो भी पकवान बन जाये दिवाली की जान।


बाजारवाद से अलग दिवाली का यही सच्चा रूप है,

देखना है तो देख लो गाँवों में सरल त्योहार का यह स्वरूप है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract