STORYMIRROR

VIVEK ROUSHAN

Abstract

3  

VIVEK ROUSHAN

Abstract

ज़िन्दगी बे-नूर हो जाए

ज़िन्दगी बे-नूर हो जाए

1 min
242

ये भी तो नहीं होता कि वो शख्स मुझसे दूर हो जाए

एक दिल के टूट जाने से ज़िन्दगी बे-नूर हो जाए


अब तो अपनी शनाख्त भी मिटती दिखाई पड़ती है

क्या करे आदमी जब इश्क़ में मजबूर हो जाए


वो पास है मेरे पर मुझसे खफा-खफा रहता है

छोड़ दिया जाए उसे जब वो मगरूर हो जाए


कुछ नहीं माँगना मैंने बस मेरे दिल कि तमन्ना है कि

मेरा दिल भी तेरे दिल जितना मगरूर हो जाए 


न दिल टूटे बेटी का न बाप के आँख में आँसू आए

मैं चाहता हूँ कि बेटियों का रिश्ता मंजूर हो जाए

  


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract