ज़िन्दगी बे-नूर हो जाए
ज़िन्दगी बे-नूर हो जाए


ये भी तो नहीं होता कि वो शख्स मुझसे दूर हो जाए
एक दिल के टूट जाने से ज़िन्दगी बे-नूर हो जाए
अब तो अपनी शनाख्त भी मिटती दिखाई पड़ती है
क्या करे आदमी जब इश्क़ में मजबूर हो जाए
वो पास है मेरे पर मुझसे खफा-खफा रहता है
छोड़ दिया जाए उसे जब वो मगरूर हो जाए
कुछ नहीं माँगना मैंने बस मेरे दिल कि तमन्ना है कि
मेरा दिल भी तेरे दिल जितना मसरूर हो जाए
न दिल टूटे बेटी का न बाप के आँख में आँसू आए
मैं चाहता हूँ कि बेटियों का रिश्ता मंजूर हो जाए