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VIVEK ROUSHAN

Abstract

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VIVEK ROUSHAN

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अपने शहर जाते हैं

अपने शहर जाते हैं

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दिन भर जलते हैं शाम को अपने घर जाते हैं

हम वो पेड़ हैं जो छाया देते-देते मर जाते हैं


कुछ ऐसे भी लोग मिलते हैं ज़िन्दगी के सफर में

जो दिल में उतरते हैं फिर दिल से उतर जाते हैं


यूँ तो अब खुद को भी याद नहीं आते हम

पर कुछ लोग याद आते हैं और हम डर जाते हैं


वो गलियाँ जहाँ गुज़ारे थे हमने वक़्त कभी

हमें जाना नहीं होता उधर हम मगर जाते हैं


दर-दर भटक कर भी जब चैन नहीं मिलता हमें

हम थक हार कर वापस अपने शहर जाते हैं।


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