सजा नहीं सकता
सजा नहीं सकता
चाहता तो हूँ उसे पर बता नहीं सकता
मैं चाह कर भी उसके पास जा नहीं सकता
दिन का आगाज़ हुआ करता जिसके दीदार से
अब वो मुझसे कहता है की मैं आ नहीं सकता
जाने कैसे लोग बना लेते हैं अपने दिल को पत्थर
मैं तो अपने दिल को दिल भी बना नहीं सकता
तमन्ना थी उसको सर से पाँव तक सजाने की
वो ऐसे गया की मैं खुद को भी सजा नहीं सकता।