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Sobhit Thakre

Abstract

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Sobhit Thakre

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कनेर का फूल

कनेर का फूल

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वो कनेर का फूल

जिसकी खुशबू जहरीली सी

उसका तन भी जहरीला सा

नीचे खुरदरे ,सफेद घाटीदार

ऊपर चिकने ,श्वेत खूबसूरती की बहार

ग्रीष्म ऋतु में खिलते

सिर से लेकर जड़ तक जहर भरे रहते

फूलों में ;फलों में पत्तियों में

,तनों में ,जड़ों में

हर ओर से ज़हरीले रूप धरते

कई जातियों ,प्रजातियों में पनपते

लाल, गुलाबी, सफेद, पीला

अवगुणों के साथ गुणों को रखते

औषधियों का काम करते

तोड़ो तो दूध झरता है

ये जहरीला दूध धीरे -धीरे चढ़ता है

पर तथ्यों का अवलोकन कर मैंने पाया है

इससे बड़ा जहरीला

तो आदमी का साया है

खत्म कर दी जिसने कितनी ही खिलती कलियों को

मसल दिए खुशबू देते फूलों को

काट दिया गहराते तनों को बना दिया बंजर जहाँ

उखाड़ फेंकी जड़े भी सारी जो पनप न सके यहाँ-वहाँ

अब कौन जहरीला है ?

वो कनेर का फूल या वो आदमी

जो कुरेद रहा है सिर से लेकर पैर तक हर दूसरे आदमी को ......!



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