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sobhit thakre

Romance

4.5  

sobhit thakre

Romance

विरह आग

विरह आग

1 min
127


जल रहा था दिल मेरा 

आग सीने में कोई दहक रही थी 

जब तुम मुझे छोड़कर जा रहे थे 

ऐसा लग रहा था 

मुझे विरह आग के हवाले कर रहे थे,

ये वो जुदाई की आग थी 

जिसमे मुझे पल -पल जलना था 

सिसकना था

मैं देह ,दिल लिए लेटी थी 

अग्नि शैय्या पर,

सुलगते शब्दों को खोज रही थी 

कि कैसे तुम्हे रोक लूँ

मोहब्बत का अर्थ बता दूं,

और कोस लू तुमको जी भरकर 

उलाहना दे दूं 

अब भी ह्रदय में भड़क रही है वही आग 

जो कर देते हैं मेरे जख्मों का,

कविताओं में अनुवाद 

इससे पहले की ह्रदय के घाव नासूर हो जाये 

और मैं पीड़ा से सराबोर होकर 

मुक्त गगन में विहीन हो जाऊँ,

मैं देखना चाहती हूँ 

मेरे नज्मों की अगन 

तुझ तक पहुँची है या नही, 

नही रहना चाहती हूँ इस पीड़ा में 

जो हर क्षण मुझे जलाए जाती है, 

पल-पल अपनी तपिश बढ़ाये जाती है

और आग और आग में झुलसाती है।


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