चलो आज चलते हैं
चलो आज चलते हैं
चलो आज चलते हैं
कहीं दूर, अंतरिक्ष के भी पार
बस तुम और मैं,
धरती की सारी जिम्मेदारियाँ,
धरती पर ही छोड़करI
गिनना चाहती हूँ
तारों को मैं,
चाँद पर बैठना चाहती हूँ,
थोड़ी देर
तुम्हारा हाथ थामकर,
पूरी निश्चिंतता से
देखना चाहती हूँ उसकी चमक में,
तुम्हारे चेहरे पर अपना अक्स,
नहीं किसी अगले जन्म का
झूठा बहलाव नहीं चाहिए मुझे,
मैं तो जीना चाहती हूँ,
सच्चाई के बस कुछ पल,
पूरे प्यार और समर्पण के,
इसी जन्म में तुम्हारे साथ
ताकि कोई मलाल बाकी न रहेI
तुम्हारे स्पर्श के आश्वासन में
भूल जाना चाहती हूँ
रूढ़ियों के बंधन,
मुक्त कर लें आओ
अपने पैरों को आज,
बस जरा देर के लिए और
चलते हैं अपने हिस्से की
दुनिया जीने...