तो आना !
तो आना !


कुछ मेरे गाँव से तेरे गाँव को जाती सड़क है न
वहीं कहीं वो आखिरी मुलाकात होगी,
कुछ तुम कहना, कुछ मैं कहूंगा,
वो शायद हमारी आखिरी बात होगी।
संग लाना वो लिफाफा जिसमें
भरे वो सारे जज्बात होंगे,
जब जाने लगे न हम दोनों
और जाने की इजाजत होगी।
करवटें बदल लेगा ये मौसम,
दुआ गर हुई कबूल न बिन बादल
उस रोज बरसात होगी।
आंखों की टपक न दिखेंगी,
जज्बात पानी संग पानी होंगे
पर पानी न होंगे, तो आना,
कुछ मेरे गाँव से तेरे गाँव को
जाती सड़क है न वहीं कहीं
वो आखिरी मुलाकात होगी।
शायद अगली सुबह कोई ओर कहानी होगी,
मैं मैं हूंगा, तुम तुम होगे और सड़कें
कहीं ओर जानी होगी,
शायद उस रोज मौसम भी सुहाना होगा,
न बादलों का आना होगा।
भोर की लाली संग चिड़ियाँ का चहचहाना होगा,
और भी कुछ बदल जाएंगे जिन्हें बदल जाना होगा,
तो आना संग लिफाफा जज्बातों का,
शायद वो आखिरी कुछेक छण
मेरे संग तू मेरे साथ होगी, तो आना,
कुछ मेरे गाँव से तेरे गाँव को जाती सड़क है न
वहीं कहीं वो आखिरी मुलाकात होगी।
माना लब सुन्न होंगे, लफ्जों का न आना होगा,
तो आंखों से कह जाना जो जुबां पे आना होगा।
मैं भी कुछ चूप ही रहूँगा,
जुबां कुछ लड़खड़ा रहीं होगी, आंखों में समुद्र होगा,
बस तुम सुन लेना उन दो मोतियों का,
जो कहना वो चाहे, जबाब भी मोतियों से देना,
कहां कुछ जुबां पे आना होगा,
शाम का वक़्त होगा,
सड़क पे शायद हलचल होगी,
गांव लोटते गायों की चहल-पहल होगी,
तो तनिक जल्दी करना, बेहतर तो यहीं गोधुली हो
इससे पहले धुले हो हमारे नैन,
माना होंगी लाल, कोई पूछे तो कहना
इन आंखों पे कोई पतंगा कुर्बान हुआ है,
आज की शाम उन आंखों में कोहराम हुआ है,
पर ये न कहना कि ये आंसू किसके नाम हुआ है,
तो आना, कुछ मेरे गाँव से
तेरे गाँव को जाती सड़क है न
वहीं कहीं वो आखिरी मुलाकात होगी।