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AVINASH KUMAR

Romance

5  

AVINASH KUMAR

Romance

प्रेम का सम्राज्य

प्रेम का सम्राज्य

2 mins
540


जाओ हवाओ देश प्रिये के, विरह के गीत गाओ तुम,

जाओ घटाओ जाओ जाओ, विरहाग्नि न भड़काओ तुम।


इस विरह के ताप से जर-जर के मैं ठठरी भया,

श्वास यूँ तो चल रही पर श्वास अनगिन चुक गया।

झर रहे हैं अश्रु आँखों से उन्हें बतलाओ तुम॥


दिन-रात में अन्तर नहीं इक से मुझे दोऊ लगे,

दिन में अँधेरी रात है और रात में तारे गिने।

मेघों ने पी चाँदनी ली, चाँद को बतलाओ तुम॥


गीली-सुलगती लकड़ी सी यह रात भी जल गई,

रात से सुबह हुई फिर शाम में वो ढल गई।

जल रहा है तन-बदन प्रिये को जरा बतलाओ तुम॥


इस विरह की अग्नि में देखो दिवाकर जल गया,

चांद झुलसा, श्वेत बादल आज काला पड़ गया।

कर रहा पीऊ-पीऊ पपीहा स्वाति-घन बरसाओ तुम॥


इस विरह की पीड़ा को तुम विश्व का साम्राज्य दो,

सब जुड़े बस दर्द से तब मानव का कल्याण हो।

साथ सब रोएँ-हँसे सबको जरा समझाओ तुम

अब कहकर आकर मिलो मुझसे मैं तुम्हारे इंतज़ार में

देर ना करो ऐ प्रिये आ मिलने प्रेम के सम्राज्य में



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