मेरा चांद
मेरा चांद
एक दिन यूँ ही
कहीं रास्ते में
एक चाँद मिल गया
निहारता रहा वो मुझे
दूर से ही कुछ दिन तक
और मैं भी उसकी चांदी
में देखता रहा अपने को
फिर धीरे से वह चाँद
बांध गया मेरे मन के
तंतुओं को अपने ॐ
भुजाओं में
अब रोज़ इंतज़ार करती
है मेरी रूह उस चाँद
के निकलने की
और डरती है
अमावस की रात से
जिसमें चाँद छुप जाता है
