रिश्तों की पाकीज़गी
रिश्तों की पाकीज़गी
ये रिश्तों की पाकीज़गी है जो कुछ रिश्ते बरक़रार है,
वरना हर रिश्ते बस नाम के रह गए हैं,
सामंजस्य बनाकर रखना हर किसी के बस की बात नहीं,
आजकल किसी के बातों में कोई मिठास नहीं,
टूट रहें हैं रिश्ते नज़दीकियों के,
दूरियों में दिखावा प्यार का है,
हो रहें हैं अलगाव अब एक ही परिवार में,
दूर हो गया है अब आपस का प्यार भी,
कमी हो गई है लोगों में एकता की आज,
बदल गए हैं सब लेकिन बदला नहीं ये सूरज-चाँद।
