राज़_ए_उल्फ़त
राज़_ए_उल्फ़त
ये जो राज़_ए_उल्फ़त तुम छुपाने लगे हो ,
इश्क़ की गली से दूर जाने लगे हो ,
तुम तो मेरे और भी क़रीब अब आने लगे हो ,
ग़मों की भीड़ में भी मुस्कुराने लगे हो ,
छुपाकर ऑखों में अश्क़ का बवंडर..
क्यों हँसकर दिखाने लगे हो ,
कितने शातिर हो तुम भी..
दिल से मेरे अब रूह में समाने लगे हो ।