अजनबी था वो
अजनबी था वो
आंँखों में आंँसू क्यों? क्यों खुद को कमज़ोर समझते हो,
जो साथ ही न चला तुम्हारे, उसे क्यों हमसफ़र कहते हो,
अजनबी दुनिया में, समझ लो अजनबी चेहरा था वो भी,
जो तुम्हारा ही नहीं, उसे क्यों अपनी ज़िन्दगी समझते हो,
जो वास्तव में दिल से जुड़े होते, वो छोड़ कर नहीं जाते,
तन्हाई का क़फ़स दे गया जो,उसे तुम किस्मत कहते हो,
यूँ ख़ामोशी को बनाकर किस्मत अपनी क्या ही मिलेगा,
किसी की बेवफ़ाई की आग में, खुद को क्यों जलाते हो,
जो आकर चला गया समझो वो तो कभी आया ही नहीं,
वो तो छलावा था उससे बंधकर खुद को क्यों रुलाते हो,
मतलब परस्त इस दुनिया में, कौन समझेगा दर्द तुम्हारा,
आख़िर किसके लिए तुम, यादों की महफ़िल सजाते हो,
उम्र भर साथ निभाने का वादा कर,मझधार में छोड़ गया,
और उसके इस फरेब को तुम, सच्ची मोहब्बत कहते हो,
पलट कर ना देखा एक बार उसने, अजनबियों की तरह,
चला गया जो क़त्ल कर मोहब्बत का उसे वफ़ा कहते हो,
तुम्हारी वफ़ा की, जज्बातों की कहाँ कीमत समझी उसने,
तुम्हारा एतबार गलत ठहरा गया जो उसे दिल में रखते हो,
क्यों खुद को दें ऐसी सज़ा, ज़िन्दगी की जिसमें नहीं रज़ा,
जो सुनना नहीं चाहता तुम्हें,उसे क्यों पुकाराना चाहते हो,
मोहब्बत गर उसकी सच्ची होती, तो दिल का दर्द न देता,
फिर दर्द देने वाले से ही क्यों, मरहम की चाहत रखते हो,
अजनबी था वो तुम्हारे लिए, अजनबी बन कर चला गया,
जो लौटकर ही नहीं आएगा क्यों उसका इंतजार करते हो,
निकलो खुद को इस भंवर से,ज़िंदगी बाहें फैलाए है खड़ी,
भुलाकर सबकुछ ज़िंदगी को क्यों नहीं तुम गले लगाते हो,
माना कि इस दर्द को भुला देना, नहीं होगा इतना आसान,
पर ज़िंदगी जो कह रही है खुद को मौका क्यों नहीं देते हो,
उठो अभी खत्म नहीं हुआ है सफ़र, चलना तो होगा तुम्हें,
क्यों रूके हो किसी अजनबी के लिए क्यों आंँसू बहाते हो।