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भाऊराव महंत

Romance

3.3  

भाऊराव महंत

Romance

अभिव्यक्ति नहीं होगी

अभिव्यक्ति नहीं होगी

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तुमको यदि मैं चाँद कहूँ तो अतिश्योक्ति नहीं होगी

बिना तुम्हारे काव्यसुधा की, अभिव्यक्ति नहीं होगी। 


चाँद प्रकाशित होता जैसे, सूर्य ताप के कारण 

देख तुम्हें प्रिय मुझमें होता, ऊर्जा का संचालन।

 

ढोल पहलवानों को देता, जैसे दंगल में बल

प्रिये ! मुझे तव अनुस्मरण से, मिले दुःख में सम्बल। 


अगर नहीं तुम जीवन-रण में, दृढ़शक्ति नहीं होगी

बिना तुम्हारे काव्यसुधा की, अभिव्यक्ति नहीं होगी।


तुलसी के जस एक राम थे, मीरा के थे कृष्णा 

वही एक तुम जिसके कारण, जागी मुझमें तृष्णा।


प्रिये !

स्वाति नक्षत्र बूँद तुम, मैं हूँ प्यासा चातक

तुम पर हूँ आरूढ़ सदा मैं, जैसे कपि का जातक।


तुम हो तो फिर और किसी में, आसक्ति नहीं होगी

बिना तुम्हारे काव्यसुधा की, अभिव्यक्ति नहीं होगी।


लय-गति-यति-सुर-ताल तुम्हीं हो, तुम्हीं छन्द के बन्धन 

बिना तुम्हारे वर्णन के प्रिय, करती कविता कृन्दन। 


अलंकार हो, शब्दशक्ति हो, वर्ण तुम्हीं स्वर-व्यञ्जन 

हो जाती है पूर्ण तुम्हीं से, काव्य-कामिनी कञ्चन। 


तुम बिन नीरस होगी कविता, रस भुक्ति नहीं होगी 

बिना तुम्हारे काव्यसुधा की, अभिव्यक्ति नहीं होगी।


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