भाऊराव महंत
Tragedy
होली अब सिन्दूर की, खेल रहे कुछ लोग।
जिसके कारण स्त्रियाँ, पातीं रहीं वियोग।।
होली दोहा
आज हम होली मे...
होली दोहा 05
होली दोहा 03
होली दोहा 01
होली हाइकू
होली कुंडलिया...
थक कर बैठ गयी पुरवाई, लेकिन पानी तनिक न बरसा। थक कर बैठ गयी पुरवाई, लेकिन पानी तनिक न बरसा।
रंगों से लैस जो रहती थी वादियाँ, गंदगी से उसके भरे नज़ारे हो गए रंगों से लैस जो रहती थी वादियाँ, गंदगी से उसके भरे नज़ारे हो गए
आओ पौधे लगाए मेरी कार, इस धरती को स्वर्ग बनाओ। आओ पौधे लगाए मेरी कार, इस धरती को स्वर्ग बनाओ।
बेचारे बिन इम्यूनिटी बिन मास्क और सेनेटाइजर के अब मरने को तैयार हो गये। बेचारे बिन इम्यूनिटी बिन मास्क और सेनेटाइजर के अब मरने को तैयार हो गये।
पदक से अब मैं सब्जी को तौलूंगी, प्रमाण-पत्र के संग रद्दी की दुकान खोलूंगी। पदक से अब मैं सब्जी को तौलूंगी, प्रमाण-पत्र के संग रद्दी की दुकान खोलूं...
हम त्याग देती हैं अपना सुख चैन नींद सब हम त्याग देती हैं अपना सुख चैन नींद सब
उम्रभर इल्तजा की दुश्मनों से दोस्ती की बड़ी महंगी पड़ी मनमानी मेरी। उम्रभर इल्तजा की दुश्मनों से दोस्ती की बड़ी महंगी पड़ी मनमानी मेरी।
देख मेरी किस्मत अपनी मां की नजर में ही नहीं उठ पाई मै। देख मेरी किस्मत अपनी मां की नजर में ही नहीं उठ पाई मै।
समझ ना आता इंसान ने खुद को कहां फंसाया सुखमय जीवन को उसने कैसे दुख में उलझाया! समझ ना आता इंसान ने खुद को कहां फंसाया सुखमय जीवन को उसने कैसे दुख में उलझाया...
धरती प्यासी,अम्बर प्यासा प्यासा देश का हर किसान! धरती प्यासी,अम्बर प्यासा प्यासा देश का हर किसान!
आज दुख के साथ कह सकते हैं कि कुछ हद तक हमारा संविधान भी ? आज दुख के साथ कह सकते हैं कि कुछ हद तक हमारा संविधान भी ?
हाँ लव अब डिजिटल हो गया है, लव आज कल फिजिकल हो गया है। हाँ लव अब डिजिटल हो गया है, लव आज कल फिजिकल हो गया है।
जिसे बचाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ती है हर स्त्री। जिसे बचाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ती है हर स्त्री।
फिर अचानक! दौड़ पड़ा... जादूगर और परियों की किताबों से सजे... उस दुकान की ओर! फिर अचानक! दौड़ पड़ा... जादूगर और परियों की किताबों से सजे... उस दुकान...
जिन रिश्तों में नहीं होती परवाह, उम्र भर के लिये रह जाती है उसमें फिर दर्द की टीस और जिन रिश्तों में नहीं होती परवाह, उम्र भर के लिये रह जाती है उसमें फिर दर्...
झुकी कमर कभी घर ना बुहारे, हो ना जायें माँ बाप कभी बेसहारे। झुकी कमर कभी घर ना बुहारे, हो ना जायें माँ बाप कभी बेसहारे।
यदि हम इतना समझ चुके हैं तो फिर आनाकानी क्यों है ? यदि हम इतना समझ चुके हैं तो फिर आनाकानी क्यों है ?
कंटक चुनचुन पंथ बनाते फिर भी ना मिलता मधुशाला। कंटक चुनचुन पंथ बनाते फिर भी ना मिलता मधुशाला।
अपनी मजबूरी किसे बताऊं, मैं उजाले मैं भी दागदार हूँ अपनी मजबूरी किसे बताऊं, मैं उजाले मैं भी दागदार हूँ
बस ! अब उसे अपने दर्द को यहीं अंत करना होगा ! उसे अपने जीवन में आगे बढ़ना होगा ! बस ! अब उसे अपने दर्द को यहीं अंत करना होगा ! उसे अपने जीवन में आगे बढ़ना ...