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संजय असवाल "नूतन"

Tragedy

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संजय असवाल "नूतन"

Tragedy

हां मैं गुस्सैल हूं

हां मैं गुस्सैल हूं

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हां, मैं गुस्सैल हूं,

जब देखता हूं अपने

आस पास लूट तंत्र को,


और लोगों को,

बेशर्मी से इस तंत्र का

हिस्सा बने,


जब मुफ्त खोरी के लिए

लोग ईमान बेच दे,

आगे बढ़ने के लिए

किसी की टांग खींच दे,


चापलूसी, मक्कारी,

अय्यारिपन लोगों के

दिलों दिमाग में छाया हो,


मन मेरा त्रस्त हो जाता है,

तब भी मैं सच बोलता हूं,

उगलता हूं आग,

हर समय हर पल,


जब झूठ सच को हराता है।

मन असहज हो जाता है,

मैं फिर भी सच बोलता हूं,

जो कड़वा होता है

जहर उगलता है

और चुभता है शूल बनकर,


झूठों के दिलों में लगातार,

हर बार और देता है गहरा घाव,

झूठों की मृत आत्मा को,


इस मृत समाज में।

हर तरफ़ लाचारी,

बेबसी है, मजबूरी है

और ढोए जा रहे हैं

झूठ का पुलिंदा सर पर लिए,


सच से भाग कर,

इस मतलबी मक्कार दुनिया में,

और कर रहे हैं शर्मिंदा सच को,

झूठ के झुंड में।


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