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Sanjay Aswal

Tragedy

4.5  

Sanjay Aswal

Tragedy

हां मैं गुस्सैल हूं

हां मैं गुस्सैल हूं

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हां, 

मैं गुस्सैल हूं,

जब देखता हूं 

अपने आस पास 

लूट तंत्र को,

और लोगों को 

बेशर्मी से

हिस्सा बने 

इस भ्रष्टतंत्र में।


जब मुफ्त खोरी के लिए

लोग ईमान बेच दे,

आगे बढ़ने के लिए

किसी की टांग खींच दे,

चापलूसी, 

मक्कारी और अय्यारिपन 

लोगों के 

दिलों दिमाग में 

इस कदर छाया हो,

मन मेरा त्रस्त हो जाता है,

और मैं..!

सत्य बोलने लगता हूं,

उगलता हूं आग

हर समय हर पल,

जब झूठ 

सत्य को हराता हो।


मन मेरा,

असहज हो जाता है,

मैं फिर भी 

सत्य बोलने लगता हूं

जो कड़वा होता है

जहर उगलता है

और चुभता है 

शूल बनकर,

झूठों के दिलों में लगातार,

और देता है 

गहरा घाव,

हर बार झूठों की 

मृत आत्मा को

इस मृत समाज में,

जहां हर तरफ़ लाचारी हो

बेबसी और मजबूरी हो 

और ढोए जा रहे हैं

झूठ का पुलिंदा 

हर कोई 

अपने सर में लिए

सत्य से भाग कर,

इस स्वार्थ से भरी

मक्कार दुनिया में,

और कर रहे हैं 

शर्मिंदा सत्य को,

झूठ के 

झुंड में

बैठकर..!!


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