तिनके-तिनके प्यार
तिनके-तिनके प्यार
बिखर रहा है किसी नीड़ सा, तिनके- तिनके प्यार ।
जाने किसने बना दिया है, रिश्तों को व्यापार ।।
दूर-दूर तक मर्यादा के, बंजर खेत पड़े हैं ।
त्याग समर्पण बेघर होकर, व्याकुल मौन खड़े हैं ।
रूखा रूखा आशाओं का,आखिर क्यों व्यवहार....
जाने किसने बना ..............।।
गाँव छोड़कर बेटा बेटी, जब से शहर गये हैं ।
बाबू जी के सपने ठोकर, खाकर ठहर गये हैं ।
यौवन भूल चुका है उनके, एक एक उपकार .....
जाने किसने...........????
सत्य, धर्म, संस्कार, संस्कृति, निर्भय हो चलते हैं ।
कभी न्याय के मुद्दे पर ये, हाथों को मलते हैं ।
केवल शब्दों तक सीमित है, अब गीता का सार .....
जाने किसने.........????
चलो शांति उद्यानों को फिर, हरा भरा कर दें हम ।
हर क्यारी में सद्भावों की, खाद पुनः भर दें हम ।
अनुशासन की अमराई को, बस कर लें स्वीकार ......
रिश्तों को फिर से दिलवा दें, रिश्तों का अधिकार......।।
जाने किसने.........????