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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Tragedy

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Tragedy

तिनके-तिनके प्यार

तिनके-तिनके प्यार

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बिखर रहा है किसी नीड़ सा, तिनके- तिनके प्यार ।

जाने किसने बना दिया है, रिश्तों को व्यापार ।।


दूर-दूर तक मर्यादा के, बंजर खेत पड़े हैं ।

त्याग समर्पण बेघर होकर, व्याकुल मौन खड़े हैं ।

रूखा रूखा आशाओं का,आखिर क्यों व्यवहार....

जाने किसने बना ..............।।


गाँव छोड़कर बेटा बेटी, जब से शहर गये हैं ।

बाबू जी के सपने ठोकर, खाकर ठहर गये हैं ।

यौवन भूल चुका है उनके, एक एक उपकार .....

जाने किसने...........????


सत्य, धर्म, संस्कार, संस्कृति, निर्भय हो चलते हैं ।

कभी न्याय के मुद्दे पर ये, हाथों को मलते हैं ।

केवल शब्दों तक सीमित है, अब गीता का सार .....

जाने किसने.........????


चलो शांति उद्यानों को फिर, हरा भरा कर दें हम ।

हर क्यारी में सद्भावों की, खाद पुनः भर दें हम ।

अनुशासन की अमराई को, बस कर लें स्वीकार ......

रिश्तों को फिर से दिलवा दें, रिश्तों का अधिकार......।।

जाने किसने.........????


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