आदमी की अक्ल अंधी है
आदमी की अक्ल अंधी है
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एक टूटी सी हवेली है ।
दिल यही पहचान तेरी है ।।
आईना वो जानता है दोस्त ;
सबके खातिर जो पहेली है ।
दोस्ती का पूछ ही मत यार ;
ये न तेरी है न मेरी है ।
जिस्म लादे इक सफर में हूँ ;
बस यहीं मेरी कहानी है ।
नेकियाँ बिखरी पड़ी हैं और ;
आदमी की अक्ल अंधी है ।
खूबियों का क्या करूँ 'अस्मित' ;
चंद पैसों में ये' बिकती है ।