राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Inspirational

4.8  

राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Inspirational

आस लगाए बैठी माँ

आस लगाए बैठी माँ

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तिनका-तिनका अरमानों की सेज सजाये बैठी माँ ।

डांट डपट सुनकर भी कितनी आस लगाये बैठी माँ ।।


आँखों में सपनों का सागर दिल में ममता की गंगा ;

चुपके-चुपके सहमी-सहमी आँख चुराए बैठी माँ ।


खुद की खुशियाँ गिरवी रखकर बेटी की खुशियाँ लाई ;

आज किसी कोने में सारे कर्ज भुलाये बैठी माँ ।


ऊँगली पकड़-पकड़ कर बाँहें गोदी लेकर घूमी जो ;

इन पथरीली राहों पर अब पाँव सुजाये बैठी माँ ।


जिस बेटे के लिए जमाने भर की खुशियाँ ठुकरायीं ;

आज उसी बेटे के कारण ठोकर खाए बैठी माँ ।


काँप-काँप कर रात-रात भर स्वेटर बुनती बेटे का ;

आज फटी साड़ी में अपनी लाज छुपाए बैठी माँ ।


धरती अम्बर तिहूँ लोक में परम पूज्य देवी जैसी ;

देवों से भी उच्च शिखर पर धाक जमाए बैठी माँ ।


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