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Dinesh paliwal

Inspirational

5.0  

Dinesh paliwal

Inspirational

श्वान औऱ बैलगाड़ी

श्वान औऱ बैलगाड़ी

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पूछा पत्नी जी को मैंने,

क्या सुनी है तुमने भी वो कथा,

जिसमें है एक श्वान और बैलगाड़ी,

और श्वान कहे बस अपनी व्यथा।

श्वान बिचारा था निरीह सी जान,

जीवन में एक था उठा तूफान,

सर पर लेके सब बोझ वही,

चलता था थी जब तक जान में जान।

इस कथा से पत्नी जी खुद को,

मैं कितना परिचित सा पाता हूँ,

कथा के श्वान की भांति ही में भी,

इस गृहस्थी की गाड़ी चलाता हूँ।।


कहकर ये जब शांत हुए हम,

और पत्नी जी से मांगा अनुमोदन,

पत्नी जी जम कर यूं बरसी कि ,

हर शंका का था बस उस दिन शोधन,

बोली पत्नी जी स्वामी तुम,

सदा ही आधा पढ़ते हो,

जो तुम को खुद पर जंचता हो,

बस किस्सा वो ही गढ़ते हो,

उस कथा में श्वान नहीं अपितु,

गाड़ी को बैलों ने था खींचा,

था छाया में संरक्षित श्वान चला,

बस गलतफहमी को दिल में सींचा,

वो गाड़ी थी सर पर उसके,

इससे वो श्वान सुरक्षित रह पाया,

उस गाड़ी और बैल को साधुवाद,

क्या स्वान कभी वो कर पाया,


इस जीवन रूपी गाड़ी में भी,

बस होता मंचन इसी कथा का है,

कब कौन श्वान कब बैल बना,

ये किस्सा बस इसी व्यथा का है।

ये अहम श्वान को भी ना हो,

की चलती उस से ही गाड़ी है,

ना ही वो बैल तिरस्कृत हो,

जिस पर असली जिम्मेदारी है,

इस गाड़ी के तो लिए सुनो जी,

बस मेरा दिल ये कह जाता है,

एक खींचता इस जीवन रथ को,

तो दूजा हरदम राह दिखाता है,

तो दूजा हरदम राह दिखाता हैं।।


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