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Dinesh paliwal

Romance

4.5  

Dinesh paliwal

Romance

।। प्रेमपत्र ।।

।। प्रेमपत्र ।।

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लिखना चाहता हूँ पत्र तुमको,

क्या लिखूँ कैसे लिखूँ ना भान है,

ये प्रेम है या बस नयन की चाह है,

मुझको अभी किन्चित नहीं ये ज्ञान है ।।

बस कुछ हुआ है कुछ दिनों से,

कुछ बावरा मन बहका हुआ,

देख कर छवि ये तुम्हारी,

है ये बेवजह चहका हुआ ।।

प्रिय लिखूँ प्रियतमा लिखूँ,

बस मेरी लिखूँ या प्यारी भी संग,

काग़ज़ रखूं कोरा कोई में,

या गुलाबी उसे भी दे दूँ रंग ।।

अपनी लिखूँ या तेरी लिखूँ,

या फिर जगत की बात हो,

भोर होते ही खत तुम्हें दूँ,

या फिर जब पिघलती रात हो ।।

प्यार का इज़हार कर दूँ,

या बस दोस्त बन कर ही

लिखूँ,

हर शब्द संशय मन करे ये,

मैं ऐसा दिखूँ या वैसा दिखूँ ।।

कितना कठिन होता है जाना,

ये प्रेम का इज़हार भी,

हर शब्द जो लिखता न जाने,

देगा जीत या फिर हार भी ।।

पत्र में बादल लिखा है,

विहग की है उड़ान भी,

अंजलि में बारिश समेटे,

उस मेघ की है शान भी ।।

चाँद तारे भी हैं उतारे,

नदिया का निर्झर नीर भी,

ये सब जो उपमा तुम को समर्पित,

है कुछ में मेरी पीर भी ।।

चाह बस कि ये पत्र मेरा,

कोने रखो तुम मन के किसी,

बस कनखियों से देख लेना,

हूँ चाह में बस जीता इसी ।

हूँ चाह में बस जीता इसी ।।



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