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Suresh Sachan Patel

Abstract Romance

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Suresh Sachan Patel

Abstract Romance

सुमन हिय के खिल गए

सुमन हिय के खिल गए

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अकुलाई धरती को जब,काले बादल मिल गए।

खुशी से फिर धरा के,सुमन हिय के खिल गए।

आ गया सावन महीना,डाल झूला पड़ गए।

मिल गई पीहर की सखियाॅ॑,फूल दिल के खिल गए।


देख आवत साजना,शर्मीले नयना झुक गए।

अकुलाई धरती को जब,काले बादल मिल गए।

झर रही ठंडी फुहारें,चल रही पुरवाई है।

नया जोश लेकर के दिल में,सावन की बेला आई है।


बागों में सुंदर और प्यारे,सुमन सुंदर खिल गए।

अकुलाई धरती को जब, काले बादल मिल गए।

घुमड़ घुमड़ कर गरज गरज कर, बरस रहे काले बदरा।

गरज गरज जब बिजली चमके,धड़क जाए मेरो जियरा।

गांव शहर और बाग बगीचे,देखो सब जल से घिर गए।

अकुलाई धरती को जब,काले बादल मिल गए।  

हरियाली अच्छादित हो गई,सूखी हुई धरा में खूब।

दादुर क्रीड़ा करते जल में, मन मस्ती से भरकर खूब।


भीगे परिंदे करते कलरव, प्रकृति को नए सुर मिल गए।

अकुलाई धरती को जब, काले बादल मिल गए।


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