।।यादों का झरोखा।।
।।यादों का झरोखा।।
अतीत के सागर से यादों की, खुशबू आज आई है।
यादों के झरोखों से विस्मृतियाॅ॑ लेती अंगड़ाई है।
कुछ आई महकती कलियाॅ॑, कुछ फूलों का इतराना।
कुछ बागों की हरियाली, कुछ फसलों का लहराना।
कुछ खुशबू महुआ की, कुछ आमों की अमराई है।
अतीत के सागर से यादों की, खुशबू आज आई है।..01
कुछ आँगन की किलकारी, कुछ चौबारे की गपशप।
वह गीत संगीत की महफ़िल, बजती ढपली ढप ढप।
मधुर ध्वनि अब भी आती है, बजती थी जो शहनाई है।
अतीत के सागर से यादों की, खुशबू आज आई है।..02
अम्मा जी की आज रसोई, याद बहुत मुझे आती है।
स्वादिष्ट पकवानों की खुशबू, अब भी मुझको आती है।
मिट्टी के जलते चुल्हे में, पकवानों की चढ़ी कढ़ाई है।
अतीत के सागर से यादों की, खुशबू आज आई है।..03
समय सुहाना था बारिश का, नृत्य मयूरा करता था।
झींगर दादुर के गीतों से, समां सुहाना बंध जाता था।
सावन की मदमस्त समां, बच्चों ने खूब मौज उड़ाई है।
अतीत के सागर से यादों की, खुशबू आज आई है।..04
घमा चौकड़ी गालियों की, बचपन के थे खेल निराले।
घर आँगन और चौबारे में, होता था दीपक के उजाले।
बैठ मुंडेर पर घर के, हम सबने पतंग उड़ाई है।
अतीत के सागर से यादों की, खुशबू आज आई है।..05