मोमबत्ती
मोमबत्ती


दीये जलाए, गीत भी गाए
पटाखे फोड़े दोस्तों के संग
घूमे खेले, मिठाइयां खाई,
दीवाली में खूब जमाया रंग
लिए मीठी थकान जब आए घर
रात की दोपहर थी आ गई
तभी कुछ देख मेरी आंँखें
वहीं की वहीं ठहर गई
मैं गया और उसके करीब
वह निरंतर रोती जा रही थी
तिल-तिल कर स्वयं को खोती जा रही थी
मैं भी द्रवित होने लगा
देख मेरी पलकों पे आँसू आ गए
मैंने पूछा तुम रोती क्यों हो?
देकर जहां भर की खुशियां
तुम मोती अपने खोती क्यों हो?
आखिर तुम तो प्रकाश हो
निराशामय जीवन की अकेली आस हो
तुम हो ज्ञान सीख और उपदेश का एक रूप भी
और घनघोर स्याह रात में सूरज की धूप भी
जिंदा प्यार का दिया है तुमसे
खुशियों हर जहां की है तुमसे
फिर आज तो दीपावली है
जिधर देखो उधर खुशी ही खुशी है
उसका पिघलना जारी था
मेरा मन हो रहा भारी था
मैंने कहा-
"लगता है किसी और के दुखों से घायल हो
रोते नहीं चुप हो जाओ, पागल हो आखिर कब तक जलोगी ?
कितनी रातें और बर्बाद करोगी ?"
त्यागो यह आकर्षण अब
ग़मजदा लोग आखिर क्या दे पाते हैं?
स्वयं दुखी रहते हैं और
दूसरों की खुशियों में बाधक बनते हैं
यह कौन सा सुख देंगे तुमको आखिर
क्यों तुम उन्हें इतना प्यार करती हो
हमेशा उन्हीं की याद करती हो
उन्हीं की बात करती हो
हृदय बिछा दिया तुमने जिनके ग़म में
कुछ तो बोलो आखिर
क्या सोच रही हो मन में
यह कैसी कसक है यह कैसा मलाल है?
इस बार वह बोली
ये कैसी बातें हैं यह कैसा सवाल है?
जानते हो मेरी आंँखों में क्यों नमी है
इस धरा पर सब कुछ है
बस इंसानों की कमी है
मैं झेंप गया
(स्वयं द्वारा किए गए प्रश्नों पर)
देखो जल रही है सर्वत्र मेरे आदर्शों की होली
मेरी रोशनी गुम हो रही है कृतिमता की चकाचौंध में
लग रहा है रोग अंधेरे का
नई से नई पौध में
और जरा इधर देखो जो मैंने देखा
वे भगवान को दूध मेंवे और मिठाई चढ़ाते हैं
जिनके मोहल्ले का आदमी भूखा है
वह पटाखों का धूम धड़ाका मचाते हैं
जिनका पड़ोसी उदास है दुखा है
और...
और हद तब हो गई जब करने को मनोरंजन अपना
वे गरीबों, अपाहिजों का मजाक उड़ाते हैं
आखिर वह भी इंसान हैं
उनकी भी खुशी है उनका भी उत्साह है
उनकी भी भूख है उनकी भी प्यास है
न हो उनको चांद की तमन्ना तो क्या
एक दिल तो उनके पास
है
सच कहती हूँ चाहत न मिली हो उन्हें तो क्या
उन्हें भी प्यार की छुअन का एहसास है
तुम ही बताओ शैलेंद्र,
दिए की जरूरत किसको है?
जिसकी आंखों में हजार सुखों के बल्ब का प्रकाश हो या
जिसे दीवाली में भी अंधेरे का एहसास हो
मैं तो कहती हूँ वे भी हमारे दुखों सुख के साझीदार हों
उनको करे सभी प्यार
उन्हें भी सब से प्यार हो
क्यों न उन्हें 'दीया' दे दिया जाए ताकि उनके जीवन का सारा अंधेरा मिट जाए
क्या तुम नहीं चाहते कि
तुम्हारा भी कोई दोस्त हो
तुम्हारी तपस्या के लिए
वह मेरी तरह जलती रहे
देखकर भीगी पलकें तुम्हारी
अपनी आंँखें नम करती रहे
हार पर हार हो तुम्हारी
किंतु हर बार, हर हार पर
वह तुम्हे उत्साह दिलाती रहे
जब तुम पढ़ो,
वह तुम्हारे सामने
बैठी रहे मेरी तरह
तुम्हें रोशनी मिले
तुम्हें हर विषय का ज्ञान हो
अंधेरे और उजाले की
सही पहचान हो
इस तरह वह स्वयं को
जलाती रहे मिटाती रहे
स्वयं अंधेरे में रहकर
तुम्हे सही राह दिखाती रहे
किसी भी परिस्थिति में
जिया जाए कैसे सिखाती रहे
तुम्हारी हर खुशी पर
दिल झूम उठे उसका
मेरी तरह
तुम्हारी हर सफलता पर इतराती रहे
रही बात मेरी मुझे मिलने वाले सुखों की
तो सच कहती हूंँ
मैं वही करना चाहती हूंँ
जिससे मेरे मन को खुशी मिले
मुझे विलासमयी सुख नहीं
सुकून देने वाली शांति चाहिए
मेरी रोशनी से धूल जाए धरती सारी
हमें आज ऐसी क्रांति चाहिए
मैंने कहा- "तुम स्त्री जात हो इसीलिए भावनाओं की गंगा में बहती रहती हो
दूसरों के दुखों को
सहजता से सहती रहती हो
लेकर दर्द उनका अपनी बांहों में
मुस्कुराती रहती हो
वरना लोग ऐसे भी हैं
जो अभिमानी जीवन के लिए कहते हैं-
"अगर अपने भी मरते हैं तो मरने दो"
उसने कहा- "शैलेन्द्र, स्त्री-पुरुष क्या
सच बात तो हमेशा सच होती है
कोई व्यक्ति महान नहीं होता
उसकी ये बातें ही महान होती हैं
इन्हीं गुणों से
उसकी असली पहचान होती है"
जो मोमबत्ती थी मेरे साथ अब तक
अब सदा के लिए सो चुकी थी
मेरे सपनों की दुनिया बिखर चुकी थी
स्मृति स्वरूप मोम का ढेर था
मैं सिहर उठता हूं, रो पड़ता हूं
सोचता हूं शायद जीवन-दर्शन यही है
जो जिए औरों के लिए जीवन वही है
जो प्रेरित करें मानवता को दर्शन वही है।