बहू रानी या बिटिया रानी
बहू रानी या बिटिया रानी
दिये दो पुत्र बहुत प्यारे प्रभु ने,
कहा समाज ने:
हो भाग्यहीन तुम,
नहीं जन्मीं कन्या तुमने,
कन्यादान है महादान,
तरोगी कैसे संसाररूपी भवसागर से,
किये बिना यह महादान?
बेटी ही होती है साथी सुख-दु:ख की,
खोलोगी मन किससे आगे?
बेटियाँ ही करती सेवा वृद्धावस्था में।
कहा मैनें:
तर जाऊँगी प्रभु कृपा से,
करूँगी कर्म ठीक यदि,
अवश्य ही इस संसाररूपी भवसागर से,
नहीं है कन्या वस्तु कोई,
करे क्यों दान माता-पिता उसका?
आ जायेंगीं कल बहुरानीयां दो,
होंगी वहीं बिटिया रानियाँ मेरी,
लगा लूँगी हृदय से उन्हें अपने,
बन जायेंगीं वह साथी सुख-दु:ख की,
कर लेगी सेवा वृद्धावस्था में दोनों।
कहा फिर समाज ने:
होता होगा ऐसा स्वप्न में या फ़िल्म में,
चलेगा बेटा भी कहने में बहू के,
न करेगी देखभाल बहू कोई तेरी,
न करने देगी बेटों को तेरे,
रह जायेंगीं दफ़्न होकर,
सभी बातें ये तेरी,
हृदय के कोने में किसी।
परन्तु:
आख़िर आया वह दिन भी,
प्रभु कृपा से,
हुआ पदार्पण पहली बहू रानी का,
घर आंगन में मेरे,
ख़ुशियों की वर्षा से भीगा मन,
चहचहाहट से उसकी भर गया
हर कोना घर का,
बना लिया घर उसने हृदय में मेरे,
प्यार की पायजेब की मधुर ध्वनि से,
बन बिटिया रानी हमारी।
पंख लगा उड़ता समय ले आया,
प्रभु कृपा से,
छुटकी बहुरानी को संग अपने,
हुई बरसात ख़ुशियों की,
फिर घर आंगन में मेरे,
मुस्कान से अपनी वह,
महकाती हर कोना घर का,
पहन ली पायजेब छुटकी ने भी
प्यार की और मधुर ध्वनि से उसकी
बना लिया घर उसने भी हृदय में मेरे,
छुटकी बहुरानी भी बन गई,
अब बिटिया रानी हमारी।
मिलकर दोनों बिटियाओं ने,
उड़ा दी धज्जियाँ समाज की,
भविष्यवाणी की,
प्यार, आदर, सम्मान, सेवाभाव,
से भरे हैं हृदय दोनों के,
हूँ तृप्त पा ऐसी बहुरानीयोंको,
हैं जो अब बिटिया रानीयां मेरी,
केवल बेटी दिवस पर ही नहीं,
बहू रानीयों - बिटिया रानीयों
रहेगा सदा ही प्यार और आशीर्वाद मेरा,
संग तुम्हारे ।।