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Usha Gupta

Tragedy Action

4.5  

Usha Gupta

Tragedy Action

माँ वसुंधरा

माँ वसुंधरा

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दर्द असीमित माँ वसुंधरा के बन मेघ बरसा रहे अश्रु,

जल थल हो रहा एक, चल रही नावें सड़कों पर,

 कितने ही मंदिर, घर, संपत्ति बन गये ग्रास रौद्र जल के,

क्रोधित पर्वत श्रृंखला भी ढलका रही शिलायें धरती पर।


पृथ्वी व पर्वतों से वृक्षों का कर रहा अपहरण मानव,

हो रहे  लुप्त पशु वनों से हरीतिमा के अभाव में,

लालच से भरा मनुष्य कर रहा चोरी नदी से  रेत की,

तोड़ पर्वत श्रृंखला निर्माण कर दी गईं खड़ी इमारतें बड़ी।


भर रहे प्लास्टिक से गहरे विशाल सागर भी फलस्वरूप जिसके,

सिकुड़ती जा रही जनसंख्या सागर के जीव-जन्तुओं की,

कर रहीं हाहाकार नदियाँ भी प्लास्टिक से भरी, 

हो रहा पर्यावरण दूषित कचरे व  प्लास्टिक के ढ़ेरों से।


 उतार कर चोला लालच का पहनों चोला मानवता का,

आओ करो संकल्प , करें निवारण माँ वसुन्धरा के कष्टों का,

 चलो लगा वृक्ष सींचें, बढ़ा दें शोभा वनों की,

संख्या न होने दे कम अब पशुओं की, करें जतन सभी।


 मिल कर करो  समुद्र व नदी के तटों को प्लास्टिक मुक्त,

बटोर कर प्लास्टिक यह सारी बना दो इससे अनेकों-अनेक,

बेंच, टेबल, प्लान्टर आदि प्रतिदिन प्रयोग में आने वाली वस्तुएँ,

करो प्रतिज्ञा,  लगा दो प्रतिबन्ध प्रयोग पर  प्लास्टिक के।


आओ बढ़ाओ हाथ, बनायें हरी भरी फिर से मातृ भूमि अपनी,

चलो करें प्रयत्न्न भरपूर, बुन दें जाल चहुँ ओर हरियाली का,

बहे जल नीला सागर में, रहें सुरक्षित जीव-जन्तु जल के सभी

रखें स्वच्छ वतन हम अपना कर दें प्रदूषण मुक्त माँ वसुन्धरा को।।



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